शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

एक तू ही धनवान है गोरी



                                                       चाँदी जैसा रँग है तेरा सोने जैसे बाल !
एक तू ही धनवान है गोरी बाकी सब कँगाल !!
जिस जगह पे तू ठहरे वो पैसों से भर जाये!
पर देश मे एक भूखा बिन रोटी के मर जाये !!
दिग्गी कपिल मनीष राहुल हैँ तेरे लाल !
तू जिस को बना ले दास वो हो जाये मालामाल !!
जो सज्जन हो उस पर क्या क्या रौब दिखातेलोग !
जिन्दा देशभक्तो पर जाने कितने इल्जामलगाते ये लोग !!
चिताओँ पर गायेगे गाथा उनकी
मगर देशभक्तो को ही देशभक्ति सिखाते है ये लोग
इटली की रानी थोड़ा भारत का भी रखो ख्याल
देश मेँ ईसाईत और इस्लाम का मत फैलाओ जाल
आतंकवाद लूट घोटाले और बलात्कार सब है तेरा रुप
कलमाड़ी हो या राजा है सब मे तेरा रुप
तू मिट जाये खाक होकर हो जाये तू बेहाल
चाँदी जैसा रँग है गोरी सोने जैसे बाल
मुन्नु करे तेरी सेवा
मीडिया करे तेरा गुणगान
प्रतिभा पकाये तेरे लिये पराठे
भारत की गिरवी रख दी तूने शान
दिल भरकर गाली देते है
तुझको ये भारत के लोग
तू किस किस को चुप करायेगी
बहुत सह चुके ये लोग
बस बचा है धनवान


जय सिंह  

राजनीति के रंग


राजनीति के रंग निराले भैया
चलते है तीर और भाले भैया
बिन पेदी के लोटा है सब
रोज ही बदले पाले भैया
सुबह शाम उड़ाये छप्पन भोग वे
जनता के लिए महंगी दाले भैया
चुनाव भर घुमें ये घर-घर पैदल
कार में भी मंत्री जी को आये छाले भैया
 करते है परिवार के साथ विदेश में शापिंग
आमजन को है खाने को लाले भैया
 संसद को बना दिया आरोपों का अखाड़ा
विकास की बात पे, जुवां पे लगे है ताले भैया
रहते है इन्हे बस कुर्सी की चिन्ता
कुर्सी के लिए देश को भी बेंच डाले भैया
बोफोर्स]चारा]टेलीकाम]हवाला
इनके बड़े-बडे़ घोटाले भैया
राजनीति के रंग निराले भैया
 दिल के है सब काले भैया।


आपका - जय सिंह 

शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

मां के गर्भ में



मां के गर्भ में
वह आंखे बन्द किये सोर्इ थी
लेकिन निर्दोष आंखों के बीच
कुछ स्वप्न था प्रतिबिमिबत
स्वपिनल संसार का अलिंगन करने का
क्या नहीं
लोरियां, किलकारियां
और चार पावों पर भागती हुर्इ परछाइयां
सब कुछ पर ....................... आह!
पीड़ा से कातर यह शब्द कैसा ?
डाक्टर थाल में परोसकर लाया
पिता आतुर था
अपनी सन्तान के अनितम दर्शन का
फटा सिर, छितराये गुदे,
अभिन्न देंह के भिन्न अंग
तथाकथित होठ नाजुक सी
कुछ सवाल था उन पर रक्त रंजित
हे मेरे जन्मदाता मेरे निर्माता
मैं इस संसार में आना चाहती थी
मां की थपकियां महसुस करना चाहती थी
इस सुन्दर संसार को
प्यारी नन्ही आखों से देखना चाहती थी
लेकिन हे मेरे जन्मदाता
यह क्या कर डाला
जन्म लेने से पहले ही
मेरा वध कर डाला।

                         जय सिंह

बाल दिवस :: चाचा नेहरू के देश के बच्चे


वो सुबह ही जिंदगी को शाम  करने जा रहा है
वो अपने ख्वाब सब नीलाम करने जा रहा है
वो जिसको इन दिनों स्कूल जाना चाहिए था
वो बच्चा दस बरस का काम करने जा रहा है।

बाल दिवस की आहटें सब जगह सुन रहा हूँ 
ये पंकितयां अपने मन मे सुबह शाम गुन रहा हूँ 
स्कूल जाने की उम्र में स्कूल का रिक्शा चलाते बच्चे
होटलों पर जूठे कप,प्लेट साफ करते बच्चे
सिनेमा हालों के बाहर मुंगफली बेचते बच्चे
फूटपाथों पर साहबों के जूते चमकाते बच्चे
गैरेजों में मोटर से कार साफ करते बच्चे
झाडू पोछा करते बच्चे, बचपन से अपरिचित बच्चे
समय से पहले बुढे होते बच्चे
बिना दवा अस्पताल में दम तोडते बीमार बच्चे
सपने देखकर लहुलुहान होते बच्चे
पतंग उडाने की जगह बनाते बच्चे
गुब्बारे खेलते नही बेचते बच्चे
बच्चे बच्चे और बच्चे
चाचा नेहरू के देश के बच्चे
बडे साहब के बंगले पर पहरा देते बच्चे
अनजाने में गलती पर मालिक का तमाचा खाते बच्चे
थोडी पगार कटवाते बच्चे
वे सभी बच्चे जिन्हे कहा जाता है-
इंसाफ की डगर पे बच्चे दिखाओ चल के
ये देश है तुम्हारा नेता तुम्ही हो कल के

कुपोशण के शिकार बच्चे
स्वास्थ संगठनों से लाचार बच्चे
अशिक्षा के अंधेरे मे रोशनी ढूढते बच्चे
गुमसुम सा पूछ रहा है किसका बाल दिवस आया है
उन बच्चों का जो एन आर आर्इ हो चूके है
या फिर उनका जिन्होने वातानुकूलित कक्षा से निकलकर
सूरज को कभी देखा नही
हवा की ताजी थपकियां कभी महसुस नही की
ओस में कभी भीगें नही
वो धुल जो माथे का चंदन भी हो सकता था
डसे केवल धुल ही समझा
फूटपाथ पर नाक बहाता बच्चा रो रहा था
बाल दिवस के सही मायने समझने की कोशिश में
अधेड होता जा रहा था।

................. जय सिंह 

बुधवार, 26 अक्टूबर 2011

दिवाली में पटाखे सावधानी से जलाये और इको फ्रेंडली दिवाली मनाये

दीपावली का महत्व सिर्फ बाहरी दुनिया के अंधकार को मिटाना नहीं है ! बल्कि यह अपने भीतर के अंधकार को दूर करने का भी त्यौहार है ! जाहिर है की  आन्तरिक अँधेरा दिया और बाती से नहीं ! ज्ञान की रोशनी से दूर होगा ! यह सुखद  है की देश में शिक्षा का प्रसार तेजी से हो रहा है लेकिन अभी भी इस दिशा   में मीलों  का सफर बाकि  है ! तमाम आकडे इस बात के गवाह है की सरकारी कोशिशे बेकार शाबित हो रही है ! ऐसे में अज़ीम प्रेम जी की  तरह ही दीपावली मानाने का संकल्प  लेना होगा ! याद कीजिये उन्होंने दो अरब डालर इस देश के गरीब और अशिक्षित बच्चो  के तकदीर सवारने के दान किया है ! हमे  दीपावली यह भी सीख देती है कि हमे दीपक जैसा उदार   होना चाहिए ! वह अपने रोशनी से दुसरो का मार्ग अलोकिक करता है !इस लिए संकल्प का भी पर्व  है !
                                                                                                                     
                                                                                                                  जय सिंह 

शनिवार, 22 अक्टूबर 2011

नींद कैसे उसे आती होगी


सर्द रात को बिस्तर में जब
पहले की तरह मुझको खोजती होगी
भर के तकिया अपनी बांहों में 
आंसू धीरे से पोछती होगी 

अपने परछार्इ से चौकाने वाली
कैसे समांए बुझाती होगी
मेंरी बांहों के सिहराने के बिना 
नींद कैसे उसे आती होगी

उसे हर रात मुझसे मिलने को 
कितने अरमान सुलगती होगी
मेरी हसीन यादों के सहारे 
               उसने कितने दिन-रात गुजारी होगी

वहां से मेरे आने का गुमां होने पर 
                   हर रोज वो रोती होगी
                        मुझको जब नींद नही आती है यहां तो 
                        कैसे मानूं कि वो भी वहां सोती होगी।


                          जय सिंह

वे हादसे


कभी-कभी जब उदासी बहुत थक जाती है
तो वह मेरे पास बैठती है
वह उदास-उदास बातें करती है
मैं थका-थका हुंकारा देता हूं
नफरत में भी उतनी ही ताकत होती है
जितनी की प्यार में
मैं हूं तो कह देता हूं
पर मेरा दिल यह बात नहीं मानता
प्यार की शिददत का
नफरत की ताकत से क्या मुकाबला
प्यार आस ही आस होती है
और नफरत बेउम्मीदी
प्यार के गम में भी एक सुख
नफरत के सुख में भी कांटे ही कांटे
उदासी कुछ सोच कर बोलती है
हर ख्याल हर उसुल अपने ही पैमाने पर 
तौलना कहां तक ठीक है
मैं हंस देता हूं
कर्इ बार मेरी जिन्दगी के साथ भी
ऐसे हादसे हुए है कि
उनकी खबर घर घर हुर्इ
वे हादसे खुशी के थे
फिर भी मैंने सिर ऊंचा नही किया
अपनी किस्मत पर मुझे पुरा भरोसा था
और फिर ऐसे हादसे हुए
जो सिर्फ मुझे मालूम है
उनका खौफनाक जिक्र कभी
मेरी जुबान ने किसी से नहीं किया
सुनाने की हिम्मत की किसी को
बोलने के लिए शब्द ही थे
हादसे खुशी के हो या गम के बस हो जाते है
उदासी थकी-थकी उठकर चल दी
यहां मेरी सांस घुट रही है
मेरा दिल सोचता रहा
दु: सबके अपने-अपने होते है
पर लगते कितने एक से है।

                        जय सिंह

शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2011

क्यों बिछड़ गये वो


एक इन्सान टूटा बिखरा सा
टूटे हुए रिश्तों को जोड़ता बेचारा सा
कैसे टूट गये रिश्ते उनसे
उसी को खोजता है
क्यों बिछड़ गये वो हमसे 
अपने को ही कोसता है
जो देखकर कभी वे
पास आते मुस्कुराते थे
चाहते हुए भी
हर बात को मुझे बताते थे
अब उन्ही के बारे में सोचता है
अपनी ही किस्मत पे हंसता है
पराये तो कब का छोड़ दिये थे
ये अब तक तो याद नहीं
अब अपने भी साथ छोड़ दिये
इन्ही शहरों में कहीं
दु: उनको तो नहीं हुआ होगा
पर मुझे तो हुआ ही होगा
जी रहा है किस तरह टूट-टूट कर
क्या अब भी कोर्इ साथ नही होगा
आरोप की वजहें होती है कर्इ
पर यह आरोप तो एक फंसाना है
हर कोर्इ अब लगता हमको हमीं से बेगाना है
यूं घिरा रहता था जिनसे वो दिन-रात
मालूम था मुझे छोड़ देगें
वो इस तरह उसका साथ
जिस मोड़ पर देखता है उनको
उसकी जिन्दगी शरमा रही है
जो छोड़ दिये उन्हे भुल जाओ
नये रिश्ते बनाना सिखा रही है
जिसको छोड़ दिये
उनके आने का कोर्इ आस नहीं 
जिसके लिए इतना कुछ किया
अब मेरे साथ नहीं।।

 जय सिंह