सर्द रात को बिस्तर में जब
पहले की तरह मुझको खोजती होगी
भर के तकिया अपनी बांहों में
आंसू धीरे से पोछती होगी
कैसे समांए बुझाती होगी
मेंरी बांहों के सिहराने के बिना
नींद कैसे उसे आती होगी
उसे हर रात मुझसे मिलने को
कितने अरमान सुलगती होगी
मेरी हसीन यादों के सहारे
उसने कितने दिन-रात गुजारी होगी
वहां से मेरे आने का गुमां होने पर
मुझको जब नींद नही आती है यहां तो
कैसे मानूं कि वो भी वहां सोती होगी।
जय सिंह
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