रविवार, 14 अगस्त 2011

क्या यही कहता है पंद्रह अगस्त

क्या यही कहता है पंद्रह अगस्त
की लूटो, खाओ रहो मस्त |
धर्म के नाम पे कट्टरता,
और जाति के नाम पे उंच-नीच
क्या पलती रहे  यूं ही नफ़रत
रह जाए न जग में प्रेम प्रीति 
भोली जनता को कर गुमराह
उनको लुटने में  रहते है ब्यस्त,
क्या यही  कहता है पंद्रह अगस्त | 
सोचो तो तिरंगे  झंडे को
जिसे सादर नमन किया करते है
इक रोज  झुका कर जिसे शीश 
फिर नेता उसको भुला दिया करते है,
अपने ही ऐश  का ध्यान दिया
अपने ही  रंग में रहे मस्त,
क्या  यही कहता है पंद्रह अगस्त|
है न्याय के  घर में लूट मची,
छीना- झपटी में भीड़ जमी ,
 पाखंड ,झूठ ,अन्याय , अनीति से
मानवता हुई शाप ग्रस्त ,
क्या यही कहता है पंद्रह अगस्त|
पंद्रह अगस्त  तो कहता है
हम एक बने हम नेक बने,
जब  बन  न सके भारतीय तो, 
 क्या हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख बने,  
ऐसी बेकार की बातों पे
रोता रहा पंद्रह अगस्त 
क्या  यही कहता है पंद्रह अगस्त|
 
-------------------------------------------- जय सिंह 

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