एक इन्सान टूटा बिखरा सा
टूटे हुए रिश्तों को जोड़ता बेचारा सा
कैसे टूट गये रिश्ते उनसे
उसी को खोजता है
क्यों बिछड़ गये वो हमसे
अपने को ही कोसता है
जो देखकर कभी वे
पास आते व मुस्कुराते थे
न चाहते हुए भी
हर बात को मुझे बताते थे
अब उन्ही के बारे में सोचता है
अपनी ही किस्मत पे हंसता है
पराये तो कब का छोड़ दिये थे
ये अब तक तो याद नहीं
अब अपने भी साथ छोड़ दिये
इन्ही शहरों में कहीं
दु:ख उनको तो नहीं हुआ होगा
पर मुझे तो हुआ ही होगा
जी रहा है किस तरह टूट-टूट कर
क्या अब भी कोर्इ साथ नही होगा
आरोप की वजहें होती है कर्इ
पर यह आरोप तो एक फंसाना है
हर कोर्इ अब लगता हमको हमीं से बेगाना है
यूं घिरा रहता था जिनसे वो दिन-रात
न मालूम था मुझे छोड़ देगें
वो इस तरह उसका साथ
जिस मोड़ पर देखता है उनको
उसकी जिन्दगी शरमा रही है
जो छोड़ दिये उन्हे भुल जाओ
नये रिश्ते बनाना सिखा रही है
जिसको छोड़ दिये
उनके आने का कोर्इ आस नहीं
जिसके लिए इतना कुछ किया
अब मेरे साथ नहीं।।
जय सिंह