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शनिवार, 22 अक्टूबर 2011

नींद कैसे उसे आती होगी


सर्द रात को बिस्तर में जब
पहले की तरह मुझको खोजती होगी
भर के तकिया अपनी बांहों में 
आंसू धीरे से पोछती होगी 

अपने परछार्इ से चौकाने वाली
कैसे समांए बुझाती होगी
मेंरी बांहों के सिहराने के बिना 
नींद कैसे उसे आती होगी

उसे हर रात मुझसे मिलने को 
कितने अरमान सुलगती होगी
मेरी हसीन यादों के सहारे 
               उसने कितने दिन-रात गुजारी होगी

वहां से मेरे आने का गुमां होने पर 
                   हर रोज वो रोती होगी
                        मुझको जब नींद नही आती है यहां तो 
                        कैसे मानूं कि वो भी वहां सोती होगी।


                          जय सिंह