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शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

बाल दिवस :: चाचा नेहरू के देश के बच्चे


वो सुबह ही जिंदगी को शाम  करने जा रहा है
वो अपने ख्वाब सब नीलाम करने जा रहा है
वो जिसको इन दिनों स्कूल जाना चाहिए था
वो बच्चा दस बरस का काम करने जा रहा है।

बाल दिवस की आहटें सब जगह सुन रहा हूँ 
ये पंकितयां अपने मन मे सुबह शाम गुन रहा हूँ 
स्कूल जाने की उम्र में स्कूल का रिक्शा चलाते बच्चे
होटलों पर जूठे कप,प्लेट साफ करते बच्चे
सिनेमा हालों के बाहर मुंगफली बेचते बच्चे
फूटपाथों पर साहबों के जूते चमकाते बच्चे
गैरेजों में मोटर से कार साफ करते बच्चे
झाडू पोछा करते बच्चे, बचपन से अपरिचित बच्चे
समय से पहले बुढे होते बच्चे
बिना दवा अस्पताल में दम तोडते बीमार बच्चे
सपने देखकर लहुलुहान होते बच्चे
पतंग उडाने की जगह बनाते बच्चे
गुब्बारे खेलते नही बेचते बच्चे
बच्चे बच्चे और बच्चे
चाचा नेहरू के देश के बच्चे
बडे साहब के बंगले पर पहरा देते बच्चे
अनजाने में गलती पर मालिक का तमाचा खाते बच्चे
थोडी पगार कटवाते बच्चे
वे सभी बच्चे जिन्हे कहा जाता है-
इंसाफ की डगर पे बच्चे दिखाओ चल के
ये देश है तुम्हारा नेता तुम्ही हो कल के

कुपोशण के शिकार बच्चे
स्वास्थ संगठनों से लाचार बच्चे
अशिक्षा के अंधेरे मे रोशनी ढूढते बच्चे
गुमसुम सा पूछ रहा है किसका बाल दिवस आया है
उन बच्चों का जो एन आर आर्इ हो चूके है
या फिर उनका जिन्होने वातानुकूलित कक्षा से निकलकर
सूरज को कभी देखा नही
हवा की ताजी थपकियां कभी महसुस नही की
ओस में कभी भीगें नही
वो धुल जो माथे का चंदन भी हो सकता था
डसे केवल धुल ही समझा
फूटपाथ पर नाक बहाता बच्चा रो रहा था
बाल दिवस के सही मायने समझने की कोशिश में
अधेड होता जा रहा था।

................. जय सिंह