शुक्रवार, 27 मई 2011

रे मन !

रे मन !
तुम मेरे लिए कितना
बहुत कुछ सह जाती हो 
अपने घर में अपमान सहकर भी 
आंसूं की बूंद निगल जाती हो 
हंसती रहती हो सदा सबके सामने 
मुझसे छुप के आंसूं बहाती  हो 
न करे अन्याय कोई मुझ पर 
शायद ! इसी डर से तुम हर 
अन्याय को चुपचाप सह जाती हो 
हर पल पर गुजरता होगा 
पल पल की कोई एहसास 
हर पल की गम पर गिरता होगा 
झूठी कलंक का भार
तुम तो हर पल पत्थर तले
दिल को भी नहीं दिखाती हो 
दुःख की घडी में छोड़ देता है 
यदि कोई तुम्हारा प्रेमी 
तो भी मुस्कुराहट का मरहम लगा लेती हो   
रस्सी पर चलने वाले 
किसी नट की तरह  हर पल तुम वही हो 
जो प्यार से बनी-ढली,वेदना से सींची
हर पल! तुम न अमीर हो न गरीब 
हर पल तुम बस
शायद ! मेरे जिश्म की एक जान हो 
केवल हर पल मेरी हो 
रे मन!


----------- जय सिंह

कुछ तो बोलो

 सदियों तक मौन रह कर 
ढ़ेरों अन्याय सह कर
लाश बने जीते रहे हो 
जहर ही पीते रहे हो
कहा तक दबते रहोगे  
और कितना अब सहते रहोगे 
बन्धनों को तोड़ दो 
भाग्य को कर दो किनारे 
बढ़ो कर्मों के सहारे 
दासता के बंध खोलो 
चुप रहो मत कुछ तो बोलो !!

आपका----
                      जय सिंह 


क्यों की बकरे का बलिदान किया जाता है
लेकिन सिंह का बलिदान करने का साहस
कोई नहीं करता ! इस लिए हम सब 
सिंह बने और सिंह की तरह गर्जना करे !
                    ----------------------------     डा ०  भीम राव अम्बेडकर 

बहरी सरकार

                                            बहरी ये सरकार बहुत है



महँगाई की मार बहुत है 
जीना अब दुश्वार बहुत है 
रोटी- रोटी मत चिल्लाओ
बहरी ये सरकार बहुत है
कश्ती अपनी डूब न जाये 
टूटी ये पतवार बहुत है
सच बोलोगे सजा मिलेगी 
लोकतंत्र बीमार बहुत है
कविता से जग उजला होगा 
कलम में   'जय'  धार बहुत है




जय  सिंह 

गुरुवार, 26 मई 2011

सावधान !












एक पुत्र  रत्न की प्राप्ति हो जाने के बाद 
पति ने पत्नी से कहा .......
अब बच्चो की संख्या 
बढ़ाने का विचार हटा ले
अब  परिवार नियोजन का 
  तरीका तू भी अपना ले 
    गुण करेगा तो 
 एक  ही लड़का काफी है
   यह सुनकर पत्नी बोली
                                         क्यों जी !
                                                           गेंहू ,  चावल , चीनी 
                                                        राशन , किराशन , पानी की
                                                     लाइन कौन लगाएगा 
                                                       एक लड़का बेचारा
                                                        कहाँ - कहाँ जायेगा 
                                                       जब दूसरा , तीसरा रहेगा 
                                                                       तभी तो 
                                                      हम सबका हाथ बटाएगा
                                                           और चुनाव प्रचार में 
                                                    मुखिया का नारा लगाएगा 
                                                              तभी तो हमें 
                                                    इंदिरा आवास योजना  का लाभ 
                                                        आसानी से मिल पायेगा  !!


                                                                      आपका ----
                                                                                  जय सिंह

बुधवार, 25 मई 2011

बेटियां

होनहार बेटियां  देश की शान बेटियां
                          बेटियां

आँख जो सपने संजोये ,वो  अरमान है बेटियां  
याद रखना इस जहाँ की शान है बेटियां   
माँ -बाप को जो तंग न करे, दर्द न देना जाने  
अपने ही घर में मेहमान है बेटियां 
कितनी सुन्दर, कितनी प्यारी होती है   
ये आपके ही आँखों की, निगेहबान है बेटियां 
माँ के गर्भ में ही कत्ल कर देते है उन्हे  
मुरझाकर भी उफ़ न करे, ऐसी गुलेदान हैं बेटियां 
नाजुक कन्धों पर भी उठा ले, भार सारे परिवार का 
ये खुदा, ये ईश्वर, ये रहमान हैं बेटियां 
थोडा पाकर ज्यादा देती, कभी न इंकार करे 
स्नेह बाटे फिर भी न जताए एहसान 
एसी ही  होनहार हैं बेटियां 

आपका ------- 
जय सिंह
 

सम्मानित पाठकों के नाम

मैं इस लिए लिखता रहता हूँ की कही मेरा लिखना भी मेरी जिंदगी की तरह किसी और के नाम न  हो जाये 1 सभी साक्षी है मेरे दोस्त हित मित्र और मेरे शुभ चिन्तक  मेरी कलम जो भी लिखती है केवल उसी के लिए लिखती है 1 ये हिसाब है उन हादसों और परिस्थितियो की चुप्पी का जो मेरे मनं के चेतन अचेतन गहराईयों में बे आवाज घटते व उठते रहते हैं , अधूरे समझौतों और कर्जाई मुस्कुराहटों का लेखा जोखा 
शिकायत कभी मेरे दिल को यह नहीं रहा की मुझे कुछ मिला ही नहीं , बहुत कुछ पाया है मैंने , बस वक्त पर ही कभी कुछ नहीं मिला ! न जाने खुशियों के सारे पोस्ट डैदित चैक मेरे हिस्से में ही क्यों आते है ? जिन्हें उसे मै कभी येन कैश नहीं कराता और न ही कोशिश ही करता  हूँ ! क्यों कि मेरे अन्दर भी एक अलग स्वाभिमान है , अलग वसूल है ! जो कह देता हु वही करता हु चाहे जो हो जाये ! पता नहीं क्यों जिसे मै अपना समझता हू , जान से भी ज्यादा मानता  हूँ , समझता हूँ , प्यार करता हूँ , वही मेरे खिलाफ हो जाता है !
मेरी चाहत कभी जुबां नहीं खोलती पर वह निराकार भी नहीं है ..........................! मैंने पल पल उन्हें जिन्दा जागते जिस्म कि तरह महसूस करता हूँ , छूता हूँ , जीता हूँ ! इस लगन व हालत में मैंने अपना नाम , पता , उद्देश्य भी खो दिया ! मुझे अपनी चलती नब्ज से खून कि रवानी से ,चलते साँस से भी उसी एक आरोप का नाम आती रहती है जो मैंने गुनाह किया ही नहीं  था ! यह नहीं कि मेरी ईस चाहत ने मुझे दुःख नहीं दिया , तकलीफ नहीं दी ! उसने खुद मेरे विश्वास कि सादा सफ़ेद चादर पर मैले पैबंद , झूठे  आरोप लगाये हैं ! पर मेरा ही दिल उसे कभी दोषी नहीं ठहरा पाता है ! अपने इस '' जीने पर '' कई  बार मैंने खुद अपने सामने सिजदे  में सर झुकाया है ! यह नहीं कि मुझे जीने के लिए ख़ुशी के मौके नहीं मिले , सच यह है कि मैंने कभी उसे अपनाना चाहा ही नहीं ! मैं आधा अधुरा कुछ चाहता नहीं और पूर्ण मिल नहीं सकता था !
आज यह टूटे हुए दिल में उभरी हुई बात उसे एक के नाम है जिसके  जिंदगी में आरोप लग जाने के बाद  मेरी जिंदगी भी हमेशा के लिए हँसाना ही भूल गई और फिर कभी हंसाने कि स्तिथि ही नहीं बना पाई ! डरता हू कि यह कही न हो कि यह सब औरो तक  तो पहुँच जाए और उस तक कभी पहुँच ही न पाए जिसके  लिए मै लिखता रहता हूँ ! किसी भी तरह के हक़ का कोई दावा नहीं है उस पर ! तभी तो अपने बिखरे हुए अहसासों को कभी उस तक पहुँचाने कि कोशिश नहीं कि ! फिर भी टूटे दिल कि तुफानो में कभी कभी एक लहर उठती है कि जिंदगी के ईतने लम्बे तनहा रेगिस्तानी कोसों में कभी कभी एक बार भी वह जान लेते कि मेरी प्यास कि शिद्दत में कोई कमी नहीं थी तभी तो मैंने उसे रेत नहीं पानी ही समझा था !

आपका ----
जय सिंह