बहरी ये सरकार बहुत है
महँगाई की मार बहुत है
जीना अब दुश्वार बहुत है
रोटी- रोटी मत चिल्लाओ
बहरी ये सरकार बहुत है
कश्ती अपनी डूब न जाये
टूटी ये पतवार बहुत है
सच बोलोगे सजा मिलेगी
लोकतंत्र बीमार बहुत है
कविता से जग उजला होगा
कलम में 'जय' धार बहुत है
जय सिंह
जय सिंह