बुधवार, 26 अक्टूबर 2011

दिवाली में पटाखे सावधानी से जलाये और इको फ्रेंडली दिवाली मनाये

दीपावली का महत्व सिर्फ बाहरी दुनिया के अंधकार को मिटाना नहीं है ! बल्कि यह अपने भीतर के अंधकार को दूर करने का भी त्यौहार है ! जाहिर है की  आन्तरिक अँधेरा दिया और बाती से नहीं ! ज्ञान की रोशनी से दूर होगा ! यह सुखद  है की देश में शिक्षा का प्रसार तेजी से हो रहा है लेकिन अभी भी इस दिशा   में मीलों  का सफर बाकि  है ! तमाम आकडे इस बात के गवाह है की सरकारी कोशिशे बेकार शाबित हो रही है ! ऐसे में अज़ीम प्रेम जी की  तरह ही दीपावली मानाने का संकल्प  लेना होगा ! याद कीजिये उन्होंने दो अरब डालर इस देश के गरीब और अशिक्षित बच्चो  के तकदीर सवारने के दान किया है ! हमे  दीपावली यह भी सीख देती है कि हमे दीपक जैसा उदार   होना चाहिए ! वह अपने रोशनी से दुसरो का मार्ग अलोकिक करता है !इस लिए संकल्प का भी पर्व  है !
                                                                                                                     
                                                                                                                  जय सिंह 

शनिवार, 22 अक्टूबर 2011

नींद कैसे उसे आती होगी


सर्द रात को बिस्तर में जब
पहले की तरह मुझको खोजती होगी
भर के तकिया अपनी बांहों में 
आंसू धीरे से पोछती होगी 

अपने परछार्इ से चौकाने वाली
कैसे समांए बुझाती होगी
मेंरी बांहों के सिहराने के बिना 
नींद कैसे उसे आती होगी

उसे हर रात मुझसे मिलने को 
कितने अरमान सुलगती होगी
मेरी हसीन यादों के सहारे 
               उसने कितने दिन-रात गुजारी होगी

वहां से मेरे आने का गुमां होने पर 
                   हर रोज वो रोती होगी
                        मुझको जब नींद नही आती है यहां तो 
                        कैसे मानूं कि वो भी वहां सोती होगी।


                          जय सिंह

वे हादसे


कभी-कभी जब उदासी बहुत थक जाती है
तो वह मेरे पास बैठती है
वह उदास-उदास बातें करती है
मैं थका-थका हुंकारा देता हूं
नफरत में भी उतनी ही ताकत होती है
जितनी की प्यार में
मैं हूं तो कह देता हूं
पर मेरा दिल यह बात नहीं मानता
प्यार की शिददत का
नफरत की ताकत से क्या मुकाबला
प्यार आस ही आस होती है
और नफरत बेउम्मीदी
प्यार के गम में भी एक सुख
नफरत के सुख में भी कांटे ही कांटे
उदासी कुछ सोच कर बोलती है
हर ख्याल हर उसुल अपने ही पैमाने पर 
तौलना कहां तक ठीक है
मैं हंस देता हूं
कर्इ बार मेरी जिन्दगी के साथ भी
ऐसे हादसे हुए है कि
उनकी खबर घर घर हुर्इ
वे हादसे खुशी के थे
फिर भी मैंने सिर ऊंचा नही किया
अपनी किस्मत पर मुझे पुरा भरोसा था
और फिर ऐसे हादसे हुए
जो सिर्फ मुझे मालूम है
उनका खौफनाक जिक्र कभी
मेरी जुबान ने किसी से नहीं किया
सुनाने की हिम्मत की किसी को
बोलने के लिए शब्द ही थे
हादसे खुशी के हो या गम के बस हो जाते है
उदासी थकी-थकी उठकर चल दी
यहां मेरी सांस घुट रही है
मेरा दिल सोचता रहा
दु: सबके अपने-अपने होते है
पर लगते कितने एक से है।

                        जय सिंह

शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2011

क्यों बिछड़ गये वो


एक इन्सान टूटा बिखरा सा
टूटे हुए रिश्तों को जोड़ता बेचारा सा
कैसे टूट गये रिश्ते उनसे
उसी को खोजता है
क्यों बिछड़ गये वो हमसे 
अपने को ही कोसता है
जो देखकर कभी वे
पास आते मुस्कुराते थे
चाहते हुए भी
हर बात को मुझे बताते थे
अब उन्ही के बारे में सोचता है
अपनी ही किस्मत पे हंसता है
पराये तो कब का छोड़ दिये थे
ये अब तक तो याद नहीं
अब अपने भी साथ छोड़ दिये
इन्ही शहरों में कहीं
दु: उनको तो नहीं हुआ होगा
पर मुझे तो हुआ ही होगा
जी रहा है किस तरह टूट-टूट कर
क्या अब भी कोर्इ साथ नही होगा
आरोप की वजहें होती है कर्इ
पर यह आरोप तो एक फंसाना है
हर कोर्इ अब लगता हमको हमीं से बेगाना है
यूं घिरा रहता था जिनसे वो दिन-रात
मालूम था मुझे छोड़ देगें
वो इस तरह उसका साथ
जिस मोड़ पर देखता है उनको
उसकी जिन्दगी शरमा रही है
जो छोड़ दिये उन्हे भुल जाओ
नये रिश्ते बनाना सिखा रही है
जिसको छोड़ दिये
उनके आने का कोर्इ आस नहीं 
जिसके लिए इतना कुछ किया
अब मेरे साथ नहीं।।

 जय सिंह