उठो संगठित होकर के सब
अपनी इज्जत अपनी अस्मत
अपनी लाज बचाओ रे
दूर खड़े क्या सोच रहे हो
सड़कों पर आ जाओ रे
आग लगी है कहीं अभी दूर तो
घर तक भी आ सकती है
आज बिरादर झुलस रहा है
कल तुमको झुलसा सकती है
उठो संगठित होकर के सब
भड़़की आग बुझाओ रे
दूूर खड़े क्या सोच रहे हो
सड़को पर आ जाओ रे
कुत्ते बिल्ली समझ के हमको
आतातायी मार रहे है
कायर बन कर छुुपे घरों में
हम बैठे फुफकार रहे है
दलने पिसने सेे अच्छा है
मिट्टी में मिल जाओ रेे
दूूर खड़े क्या सोच रहेे हो
सड़को पर आ जाओ रे
रोक नही सकती है
हम पर होते अत्याचारो को
वोट के बल पर धूल चटा दो
इन जालिम सरकारों को
न्याय मिलेेगा तब ही जब
अपनी सरकार बनाओ रे
दूर खडे क्या सोच रहे हो
सड़कों पर आ जाओ रेे
रोक सको तो बढ़ कर रोको
खून के जिम्मेदारों को
रोको,रोको दलित वर्ग पर
बढ़ते अत़्याचारो को
उठोे संगठित आँधी बनकर
अम्बर तक छा जाओ रेे
दूर खड़े क्या ताक रहे हो
सड़कों पर आ जाओ रे
***** जय सिंह*****
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