मंगलवार, 17 मार्च 2015

बेटी बचाओ पर जय सिंह की कविता-------

बेटी बचाओ 

कोर्ट  में एक अजीब मुकदमा आया
एक सिपाही एक कुत्ते को बांध कर लाया
सिपाही ने जब कटघरे में आकर कुत्ता खोला
कुत्ता रहा चुपचाप,  मुँह से कुछ ना बोला..!
नुकीले दांतों में कुछ खून सा नज़र आ रहा था
चुपचाप था कुत्ता, किसी से ना नजर मिला रहा था
फिर हुआ खड़ा एक वकील, देने लगा दलील
बोला,  इस जालिम कुत्ते के कर्मो  से यहाँ मची तबाही है
इसके कामों को देख कर इन्सानियत भी घबराई है
ये क्रूर है, र्निदयी है,  इसने समाज में तबाही मचाई है
दो दिन पहले जन्मी एक कन्या को,  अपने दाँतों से खाई है
अब ना देखो किसी की बाट
आदेश करके उतारो इसे मौत के घाट
जज की आँख हो गयी लाल
तूने क्यूँ खाई कन्या, जल्दी बोल डाल
तुझे बोलने का मौका नहीं देना चाहता
लेकिन मजबूरी है, अब तक तो तू फांसी पर लटका पाता
जज साहब,  इसे जिन्दा मत रहने दो
कुत्ते का वकील बोला,  लेकिन इसे भी तो कुछ कहने दो
फिर कुत्ते ने मुंह खोला, और धीरे से बोला
हाँ,  मैंने वो लड़की खायी है
अपनी कुत्तानियत निभाई है
कुत्ते का र्धम है ना दया दिखाना
माँस चाहे किसी का हो,  देखते ही खा जाना
पर मैं दया-र्धम से दूर नही
खाई तो है,  पर मेरा इसमें कोई कसूर नही
मुझे याद है,  जब उस  लड़की  को  कूड़े के ढेर में पाई थी
और कोई नही, उसकी माँ ही उसे फेंकने आई थी
जब मैं उस कन्या के गया पास
उसकी आँखों में देखा भोला विश्वास
जब वो मेरी जीभ देख कर मुस्काई थी
कुत्ता हूँ,  पर उसने मेरे अन्दर इन्सानियत जगाई थी
मैंने सूंघ कर उसके कपड़े,  वो घर खोजा था
जहाँ माँ उसकी थी,  और बापू भी चैन से सोया था
मैंने भू-भू करके उसकी माँ को जगाई
पूछा तू क्यों उस कन्या को फेंक कर आई
चल मेरे साथ,  उसे लेकर आ
भूखी है वो,  उसे अपना दूध पिला
माँ सुनते ही रोने लगी
अपने दुख सुनाने लगी
बोली,  कैसे लाऊँ अपने कलेजे के टुकड़े को
तू सुन,  तुझे बताती हूँ अपने दिल के दुखड़े को
मेरी सासू मारती है तानों की मार
मुझे ही पीटता है,  मेरा भरतार
बोलता है लङ़का पैदा कर हर बार
लङ़की पैदा करने की है सख्त मनाही
कहना है उनका कि कैसे जायेंगी ये सारी ब्याही
वंश की तो तूने काट दी बेल
जा खत्म कर दे इसका खेल
माँ हूँ,  लेकिन थी मेरी लाचारी
इसलिए फेंक आई,  अपनी बिटिया प्यारी
कुत्ते का गला भर गया
लेकिन बयान वो पूरे बोल गया....!
बोला,  मैं फिर उल्टा आ गया
दिमाग पर मेरे धुआं सा छा गया
वो लड़की अपना, अंगूठा चूस रही थी
मुझे देखते ही हंसी,  जैसे मेरी बाट में जग रही थी
कलेजे पर मैंने भी रख लिया था पत्थर
फिर भी काँप रहा था मैं थर-थर
मैं बोला,  अरी बावली, जीकर क्या करेगी
यहाँ दूध नही,  हर जगह तेरे लिए जहर है,  पीकर क्या करेगी
हम कुत्तों को तो,  करते हो बदनाम
परन्तु हमसे भी घिनौने,  करते हो काम
जिन्दी लड़की को पेट में मरवाते हो
और खुद को इंसान कहलवाते हो
मेरे मन में,  डर कर गयी उसकी मुस्कान
लेकिन मैंने इतना तो लिया था जान
जो समाज इससे नफरत करता है
कन्या हत्या जैसा घिनौना अपराध करता है
वहां से तो इसका जाना अच्छा है
इसका तो मर जाना अच्छा है
तुम लटकाओ मुझे फांसी,  चाहे मारो जूत्ते
लेकिन खोज के लाओ,  पहले वो इन्सानी कुत्ते।
लेकिन खोज के लाओ, पहले वो इन्सानी कुत्ते।।


जय सिंह 

तुम्हे पाने की जिद

तुम्हे पाने की जिद
तुम्हे पाने की दिल में, जिद जो उठी नही होती
मेरी दुनिया इस तरह हरगीज लुटी नही होती
भीगी-भीगी आंखे है, सुबह से शाम तक दिलबर
तेरी चाहत जो न होती, ये बारिश नही होती
तेरी यादें  हर पल मुझे बेचैन करती है
मै पागल कैसे होता, अगर साजिश नही होती
हर पल अंधेरे से, यूं  दिलों के है भरे कमरे
दिल के दर पे कोर्इ डोर बंधी नही होती
'जय' तेरी चाहत कैद है, दिन-रात उसकी सांसो मेें
ये दिल यूं पत्थर न होता, जो उनसे रंजिश नही होती।

आपका - जय सिंह 

मुझे देख कर


मुझे देख कर अब तूमको, मुस्कुराना नहीं पड़ेगा,
अपना प्यार मुझ पे, अब जताना नहीं पड़ेगा।
दूर चला जाऊँगा मै, सारे रिश्ते तोड़ के,
लाख जतन तुम करती रहना, टुटे गाँठों को जोड़ के।
अब ना नजर आऊँगा मै, इन आँखों के पोर से।
मुझसे अब तूमको, नजरे चुराना नहीं पड़ेगा,
मुझे देख कर अब तूमको, मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।
सो जाऊँगा कभी मै मौत की गहरी नींद में,
रुह बना मै रोज मिलूँगा, तूमसे सपनों के हिलोड़ में।
लाख जतन तुम करती रहना, अपने हाथ पाँव जोड़ के,
कभी भी लौट के ना आऊँगा मै, इन आँखों को खोल के।
लोरी गा के रात में, मुझे सुलाना नहीं पड़ेगा,
अब तूमको मुझे जगाना नहीं पड़ेगा।
मुझे देख कर अब तूमको, मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।
जब कभी याद आऊँगा मै, बदली बन कर फलक पड़ छा जाऊँगा मै।
यादों का सरताज बना मै, अपना वो गीत फिर गुनगुनाऊँगा,
फिर से अब यूँ ही तूमको, मेरा वो गीत गुनगुनाना पड़ेगा।
वीणा के हर तार पे पाँव रख कर,
फिर से अब तूमको, मेरे लिए आना नहीं पड़ेगा।
मुझे देख कर अब तूमको,  मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।
बादल बन के नभ में मै, बारिश के साथ धरा पर बरसता रहूँगा,
टीप टीप बूँदों सा बना मै, नदियों सा सागर को तरसता रहूँगा।
लाख जतन तुम करती रहना, बूँद बूँद को जोड़ के,
बूँद बूँद से सागर बना मै, अब तो सूख ना पाऊँगा।
मेरे भीगे तन को अब तूमको, सूखाना नहीं पड़ेगा।
मुझे देख कर अब तूमको, मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।
नये फूल सा हर मौसम में मै, खिलता और मुरझाता रहूँगा,
तेरे प्यार में गीतकार बना मै, रोज नये गीत बनाता रहूँगा।
लाख जतन तुम करती रहना, बाग के फूल को तोड़ के,
अब ना गाऊँगा मै, इन होंठों के शोर से।
मेरे जुदाई पे अब तूमको, आँसू बहाना नहीं पड़ेगा।
मुझे देख कर अब तूमको, मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।
इंद्रधनुष के सात रंगों में मै, रंगीला हो जाऊँगा,
रग रग में अब रंग रंग से, रंगोली बन जाऊँगा।
लाख जतन तुम करती रहना, मेरे रग से रंग निचोड़ के,
नहीं मिल पाऊँगा मै, रंगों के झनझोर से।
मेरे तन पे अब तूमको, रंग लगाना नहीं पड़ेगा।
मुझे देख कर अब तूमको, मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।
नये देश और नये वेश में, परदेशी हो जाऊँगा,
आज यहाँ कल जाने कहाँ, अपना डेरा बसाऊँगा।
लाख जतन तुम करती रहना, तिनकों से घर जोड़ के,
अब ना रह पाऊँगा मै, अपनी दुनिया छोड़ के।
मेरे साथ अब तूमको, घर बसाना नहीं पड़ेगा।
मुझे देख कर अब तूमको, मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।
आँखों का आँसू बन के मै, तेरी आँखों में ठहर जाऊँगा,
नेत्र जलद में नीर बना मै, रोज गोते लगाऊँगा।
लाख जतन तुम करती रहना, रो रो के शाम तक भोर से,
आँखों से बह पाऊँगा न मै, उस सुरीली दुनिया को छोड़ के।
मेरे लिए अब तूमको, आँसू बहाना नहीं पड़ेगा।
मुझे देख कर अब तूमको, मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।
रात में मद्धम प्रकाश बना मै, तेरे काले बालों में समा जाऊँगा,
निशा काल में चाँद बना मै, रोज तेरे छत पे आऊँगा।
लाख जतन तुम करती रहना, लौट आऊँ मै इस घनघोर से,
तारों को छोड़ आ पाऊँगा न मै, उस जादुई नगरी को छोड़ के।
मेरे लिए अब तूमको, सपने संजोना नहीं पड़ेगा।
मुझे देख कर अब तूमको, मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।
दुनिया में प्यार का दूत बना मै, हर पल प्यार लुटाऊँगा,
दुष्ट तन में प्यारा सा दिल मै, प्यार का पाठ पढ़ाऊँगा।
लाख जतन तुम करती रहना, कि मै गुजरुँगा तेरी ओर से,
तेरी ओर अपना रुख मोड़ पाऊँगा न मै, टुटे हुए हर बंधन को जोड़ के।
ऐसा नाम कर जाऊँगा मै, सबके दिलों में नजर आऊँगा मै।
मुझे देख कर अब तूमको, नजरे चुराना नहीं पड़ेगा,
मेरे लिए अब तूमको, कही सर झुकाना नहीं पड़ेगा।
मुझे देख कर अब तूमको, मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।

आपका – जय सिंह  

मंगलवार, 22 जुलाई 2014

तेरी जाति क्या है रे ?

बच्चे होते है कोरे कागज की तरह
मन होता है कोमल और सच्चा
तभी तो सब कहते है की ये है बच्चा
उनको नहीं होती है जीवन की कोई परवाह
न वर्तमान का भय  न भविष्य की चिंता
उनको नहीं पता होता है क्या है हालत क्या है व्यवस्था
बातों में बहलना बच्चों का स्वभाव होता है
मौन का सन्नाटा उनके लिए अभिशाप होता  है
प्रकृति की गोद में उद्धम किए बिना उन्हें रहा नही जाता
सारी प्रकृति उन्हें माँ की तरह लगती है
उन दिनों मास्टर जी
बच्चे, बुड्ढे , औरत, युवक, के स्वभाव को समझता था
पर आज ऐसा सर्वनाश हुआ की कुछ नहीं जानते
और बच्चो के सामाजिक भावना को है ललकारते
अधिकांश बाते न ही जानते है और न ही जानने की चेष्टा करते है
बच्चे के मन को बहलाने की आशय से
यूँ ही पूछ लिया  "तेरी जाति क्या है रे "?
सवाल सुनते है बच्चे का शरीर में कपकपी सी हो गई
बच्चा कुछ बताना चाहता था
पर उसकी हिम्मत ने जबाब दे दिया
और कुछ बताने से पहले है उसकी शाहस को हमेशा के लिए मार दिया |

..........................जय सिंह 

शुक्रवार, 9 मई 2014

माँ....

             माँ....


माँ.... तेरी गोद
मुझे मेरे अनमोल होने का एहसास कराती है |
माँ.... तेरी हिम्मत
मुझे संसार जितने का विश्वास दिलाती है |
माँ.... तेरी सीख
मुझे आदमी से इन्सान बनाती है |
माँ.... तेरी डॉट
मुझे रोज़ नई राह दिखाती है |
माँ.... तेरी सूरत
मुझे मेरी पहचान बताती है |
माँ.... तेरी पूजा                  
मेरी हर पाप मिटाती है |
माँ.... तेरी लोरी
अब भी मीठी नींद सुलाती है |
माँ.... तेरी एक मुस्कान
रोज़ सारी  थकान मिटाती है |
माँ.... तेरी याद
हर पल मुझे बेचैन कर जाती है |
माँ.... ये तेरी प्यारी तस्वीर
मेरे अकेलेपन को दूर भगाती है ||
माँ.... ओ मेरी माँ..... |

आपका ---- जय सिंह 

रविवार, 29 सितंबर 2013

शादियों का मौसम नजदीक आ रहा है




शादियों का मौसम नजदीक रहा है
हर दिन नया न्योता घर पर रहा है
बिचौलिए द्वारा लड़की को
सुशील,सुन्दर,गुणवती,रूपवती और
प्यार करने वाली बताया जा रहा है
मुस्कुराती खुबसुरत लड़की की
साथ में अनेक पोज में फोटो खुब रहा है
मुझे भी एक दोस्त की गुजरा जमाना याद रहा है
कुछ साल पहले उसने भी शादी रचाई थी
शादी उसी लड़की से होगी, जीत घर वालो से पाई थी
यही थी उसकी आखिरी जीत जो उसने पाई थी
शादी के बाद तो, चुम्बन बसहारसे पाई थी
शक्ल जो उन्होंनेमुहं दिखाईके समय ऐसी बनाई थी
असल तेवरों में उनके, झलक उसने तब पाई थी
पूरे एक साल तक दी थी उसने -एम०आई०
सात दिन के उस हनीमून की
जो विदेश में मनाई थी
यूं तो बाज़ार हर हप्ते जाता है
भर-भर कर सामान हमेशा घर भी लाता है
पर कब की थी खुद की खरीददारी
याद करने में दिमाग पर थोड़ा जोर लग जाता है
उसे क्या है पहनना, कपड़े भी मैडम के हाथों तय किया जाता है
ड्रेस तो बस एक ही ली जाती है,
उनकी पत्नी को पसंद पांच घंटे में आती है
शोपिंग में हमेशा नाराज़ हो जाती है
तोहमत भी हमेशा दोस्त पर ही आती है
शॉपिंग इतनी हो चुकी
थक कर खाना अब कहाँ बनायेंगे
पास में ही रेस्टोरेंट है डिअर
चलो डिनर कर के ही घर जायेंगे
फरमाइशें और पत्नी
पर्यावाची से नज़र अब आते है
शादी के बाद पत्नी ही सही होती है
अपने सारे लोजिक गलत से नज़र आते है
होता होगा कभी .................
जब होता होगा की पत्नी डर जाती थी
आँखों में ढेर सारा आंसू लाती थी
सिंघनी सी आज वो दहाड़ती है
पतिदेव बकरी जैसी मिमियाते है
मायके आज कल कहा किसको जाना होता है
बोर हुए माँ-बाप, बिटिया के घर हॉलिडे मनाना होता है
संभल कर आप हाथ रखे, दर्द से हालत बदल जाते है
दोस्तों सोच समझ कर कीजिये शादी
शादी के बाद सारे समीकरण बदल जाते है
पत्नी की सारी जिम्मेदारी आप पर
और आप उनकी जिम्मेदारी में कहीं नज़र नहीं आते है ||

? जय सिंह
(युवा कवि, व्यंगकार, कहानीकार)



|| हिन्दी भाषा को प्रणाम ||


हिन्दी भाषा को प्रणाम, मातृ भाषा को प्रणाम
हिन्दुस्तान की जुबान, हिन्दी भाषा को प्रणाम
मेरे देश की महान हिन्दी भाषा को प्रणाम
मीरा के घुंघरू हैं इसमे, सूरा का इकतारा
कबीरा के ताने बाने, भूषण का धवल दुधारा
हुलसी के तुलसी का इसमें, रामचरित मानस है
रत्नाकर रसखान देव का, फैला विमल सुयश है
गोरखनाथ की वाणी, संत रविदास ने जानी
नागरी लिपि की मधु मुसकान, हिन्दी भाषा को प्रणाम
गंगा के तट लिखी महाकवि बच्चन ने मधुशाला
तीर्थराज की सड़कों पर पत्थर तोड़ते निराला
संगम जहा त्रिवेणी का है वहां महादेवी है
काश्मीर से अंतरीप तक सब हिन्दी सेवी है
प्रेमसागर के लल्लू लाल, हिन्द हिन्दी के कवि इकबाल
अपनी वाणी रस की खान, हिन्दी भाषा को प्रणाम
प्रेमचन्द के होरी धनिया का गोदान यहां है
और मैथलीशरण गुप्त का उर्मिलगान यहां है
दिनकर की हुंकार बिहारी की झंकार यहां है
हिन्दी के माथे की बिंदी, सभी को प्यारी है यह हिन्दी
देव वाणी की प्रिय संतान, हिन्दी भाषा को प्रणाम
हिन्दी में ही लिखा कि झण्डा उचा रहे हमारा
लिखा की सारे जहां से अच्छा हिन्दोसतां हमारा
हिन्दी में ही लिखा सखी रे, मोय नंदलाला भायो
हिन्दी में ही लिखा री मैया, मैं नही माखन खायो
हिन्दी जनगण का नारा है, राष्ट्र के जीवन की धारा है 
अपनी आनबान ह शान, हिन्दी भाषा को प्रणाम
प्रकृति सुंदरी की पूजा में पंत हुए सन्यासी
कामायनी काव्य की साक्षी है प्रसाद की काशी
स्वर्णपृष्ठ पर लिखी सुभद्रा ने कविता कल्याणी
सन सत्तावन की मरदानी झांसी वाली रानी
हिन्दी हल्दी की घांटी है हिन्दी विप्लव की माटी है
आजादी की अग्र कमान हिन्दी भाषा को प्रणाम
अपनी वाणी रस की खान हिन्दी भाषा को प्रणाम

---  जय सिंह  ----
(युवा कवि, व्यंगकार, कहानीकार)

बुधवार, 28 अगस्त 2013

Happy Friendship Day



 Happy Friendship Day

कई बार देखा है
जब बहुत बहुत उदास होते हैं
बिलकुल अकेले होते हैं
तब कोई एक दोस्त
जुगनू सा चमकता हुआ आता है
अपनी दो बातों से
सारा कष्ट हर ले जाता है

अब तो ऐसा है
आशान्वित सा रहता है मन
जब
बहुत दुखी होता है
कि कोई बहुत अच्छी बात
होने वाली है
रोती आँखें हंस कर
फिर और रोने वाली है

किसी पुराने रचित छंद सा
अपना ही कोई
कुछ ऐसी बातें कह जाता है
कि
जीवन के प्रति अविश्वास
तुरंत ढ़ह जाता है

याद आने लगता है
माटी का दिया
जो कभी गंगा की लहरों में
प्रवाहित किया था
और देर तक निहारते रहे थे
कि देखें कहाँ तक जाता है
कहो क्या वो लम्हा
आपको भी याद आता है?

याद आती है
साथ बितायी कुछ एक
सुन्दर घड़ियाँ...
जिनके बलबूते
देखो वर्षों बाद भी मात्र चंद बातें कर के
हम जोड़ लेते हैं सुनहरे पलों की कितनी ही लड़ियाँ...

कभी कभी ही
ऐसा
होता है
पहचान लम्बी न हो
पर फिर भी कोई
बिलकुल अपना हो लेता है

'आप' की औपचारिकताओं से ही
हम निकल नहीं पाए थे
कि वक़्त बीत गया
जितनी कवितायेँ सुनी थी आपने 
वह सब वहीँ प्रांगन में
पीछे छूट गया

अब समेटेंगे हम
सबकुछ
धीरे धीरे!
उन अनमोल घड़ियों को
यहीं से जी लेंगे...
जो जी गयीं थीं ''आईआईएमसी'' तीरे!!
आप सभी प्यारे दोस्तों याद आती है Happy Friendship Day


जय सिंह

गुरुवार, 25 जुलाई 2013

आर्इआर्इएमसी ट्रेनिग सेंटर में डॉ० की माया


मै खुश होकर आया आर्ईआर्इएमसी ट्रेनिग सेंटर
चलो कुछ दिन नही पडे़गे अब बीबी के हंटर
खाया खाना मेस का तो हुआ पेट में दर्द
दौडा मै डाक्टर के पास और पूछा इसका मर्ज
डाक्टर बोला-
देखने में हट्टा-कट्ठा हो, साढे पांच फिट का पट्ठा हो
कहते हो पेट में दर्द है, अबे तूं कैसा मर्द है
खैर आया है तो बतलाता हूं
बनकर दोस्त तुझे समझाता हू
बेटा तूं अपने जीवन को नया मोड दे
अब लडकियों का पीछा छोड दे
पेट से तो दर्द तेरे नही जायेगा 
लेकिन टेनिंग पूरा होने से पहले ही तू मर जायेगा
सुनकर यह मै डाक्टर से बोला
डाक्टर साहब
हो सकता है मेरे पेट में हो फोडा
लेकिन रिश्ता तो पेट दर्द का है 
आपने लडकियों से क्यों जोडा
डाक्टर जरा सा खिसक कर मेंरे पास आया
और प्यार से मुझे समझाया 
बेटा अभी तू बच्चा है, थोडा अक्ल का कच्चा है
जिन कन्याओं पर तेरा दिल आया है 
उसमे से एक मेंरी बेटी माया है।

आपका -----जय सिंह 

गुरुवार, 4 जुलाई 2013

आज जन्म दिन हमारा


माँ की आंचल का मोड़ कर किनारा
पापा के आंगन में खिला उजियारा
आस्था के फूल करूँ ईश्वर को अर्पित
कमजोर घड़ियों में प्रभु हो तेरा सहारा
खुशियों के नुपूर बजने लगे रुनझुन
आज सुनहरा जनम दिन हमारा ................जय सिंह 



जन्म दिन मुबारक हो 


लो माँ .... एक साल और बीत गया 
ना हो पाया इस साल भी 
हमारा मिलन,
 सोचा था 
इस जनम दिन पर मै तुम्हारे साथ रहूँगा 
पर मेरी विवशता देखो ,
नहीं आ पाया इस साल,
हर साल की तरह 
क्योकि .........
मै निभा रहा हूं  
उन कसमों को उन वादों को 
जो तुमने मुझे निभाने को कहा था 
समाज के उन दायित्वों को 
जो तुमने सिखाया था 
जब मै विदा हुआ था 
उस घर से इस आई.आई.एम.सी. में 
ट्रेनिंग के लिए 
पर माँ !
मै एक आफिसर और समाज सेवक के साथ-साथ 
एक राजा बेटा भी हूं न .......
मुझे भी तुम्हारी याद बहुत आती है 
तुम्हारी वो सुकून भरी गोद 
तुम्हारी हाथों से नारियल का लड्डू खाना........
जब मै टूटता या बिखरता हूं 
पर, फिर लग जाता हूं 
निभाने दायित्वों को 
तुम्हारी ही दी हुई शिक्षा को 
तुम भी तो मुझे याद करती होगी माँ !
पर 
तुम भी तो घिरी हो दायित्वों के घेरे में,
पर, तुम कभी नहीं थकती |
लेकिन, मै देख पाता हूं वो मायूसी 
जो मेरे दूर रहने से छा जाती है 
तुम्हारी आँखों में 
पर माँ !
तुम उदास मत होना 
शायद अगले साल 
तुम्हारे जन्म दिन पर मै 
तुम्हारे पास होऊं 
इसी इंतजार में .....
आज से ही गिनता हूं दिन 
365 हाँ पूरे 365 दिन 
फिर मिलकर काटेंगे केक 
मै खिलाऊंगा केक का टुकड़ा तुम्हे 
जो अपने घर से दूर रहकर नहीं खिला पाया 
और तुमने भी तो ...... मेरे कारण 
केक बनाना ही छोड़ दिया 
और छोड़ दिया जन्म मनाना भी 
माँ ! अगले साल मनायेगे जन्म दिन 
सजायेंगे महफ़िल 
और तुम केक बनाकर रखना 
और फिर मेरा इंतज़ार करना .....


तुम्हारा प्यारा लाडला .............जय सिंह 




जन्मदिवस के इस अवसर पर

जन्मदिवस के इस अवसर पर
थोड़ा सा तो इंज्वाय हो जाय
गुमसुम से बैठे हैं हम तुम
चलो एक कप चाय हो जाय।

धूम धडा़का किया बचपन भर
जीवन जी भर जिया मस्ती भर
आज सुखद यह शीतल मौसम
उनकी यादों में डूबा मन
खिड़की में यह सुबह सुहानी
यों ही ना बेकार हो जाय
चलो एक कप चाय हो जाय।

खुशबू तो हमने महकाई
देखो सबने है अपनाई
जगह-जगह लगते हैं मेले
हम क्यों बैठे यहाँ अकेले
नयी हमारी इस किताब का
ज़रा एक अध्याय हो जाय
चलो एक कप चाय हो जाय।

फूल भरा सुंदर गुलदस्ता
देखो कहता हंसता हंसता
दुख का जीवन में ना भय हो
जन्मदिवस शुभ मंगलमय हो
रस मलाई का डिब्बा खोलो
मुंह मीठा एक बार हो जाय
चलो एक कप चाय हो जाय।

जन्मदिवस के इस अवसर पर
थोड़ा सा तो इंज्वाय हो जाय..............जय सिंह 



मुबारक जन्मदिन मुबारक तुझे

(मेरी माता जी द्वारा मुझे समर्पित) 


मुबारक जन्मदिन मुबारक तुझे
जिन्दगी का हर एक पल मुबारक तुझे
तेरी किलकारी से गूंजे आंगन मेरा
चंदा गोदी में लोरी सुनाये तुझे
मुबारक जन्मदिन मुबारक तुझे…….
टूटें कितने खिलोने कोई गम नहीं
पर खिलौना मेरा मुझसे न रूठे कभी
हैं तुझ पर न्योछावर ये सांसें मेरी
आंसू आँखों से तेरी न छलके कभी

आ के दादी के आंचल में छुप जाना तूं
भूल से भी अगर कोई डांटे तुझे
मुबारक जन्मदिन मुबारक तुझे