गाल बजाकर यजमानों को नाच नचाते पंडित जी
रचकर मायाजाल चकाचक माल उड़ाते पंडित जी
बरही हो या पसनी हो या मुण्डन हो या कनछेदन
हर मौके पर टीम-टाम कर दाम बनाते पंडित जी
शादी के मौके पर तो वे फस्ट डिविजन लाते है
मोटी मुर्गा फंसा फंसाकर लुट मचाते पंडित जी
तीज त्योहार पड़े तो घर-घर पंडित जी को राशन दो
पर्व पड़े तो घर-घर पूजा-पाठ करवाते पंडित जी
बाग लगाओ,घर बनवाओ,कुआं,वावली खुदवाओ
सब कामों में टांग अड़ाकर टैक्स लगाते पंडित जी
सत्यनारायण ब्रत कहकर झुठी कथा सुनाया करते है
इसी बहाने नकद नरायन घर पर लाया करते है
पत्थर भर की पुजा से जब पापी पेट न भर पाता
तो माटी के महादेव घर-घर पुजवाते पंडित जी
तेरही खाते, बरही खाते फिर भी नहीं अघाते वे
पितर-पक्ष में तब पुरखों का श्राद्ध रचाते पंडित जी
कथा-भागवत जीने पर है, मरने पर है गरूड़-पुराण
पैसे लेकर कैसी-कैसी गप्प सुनाते पंडित जी
क्रिया-कर्म करवाना हो तो महापात्र बन बैठे है
बिना पूंजी के रोजगार से लाभ लहाते पंडित जी
महापात्र का भारी भरकम पेट डाक का डिब्बा है
खान-पान सब डाल उसी में स्वर्ण पठाते पंडित जी
गंगा जी के सब घाटों पर पंडा बनकर बैठे है
राख,फूल लेकर जाओ तो चुना लगाते पंडित जी
अस्थि विसर्जन करने पर भी पुरखे पार न पाते है
दूर 'गया' में पिंड दान करवाते पंडित जी
जोगी-जाती, पुजारी, पंडा साधु बने सन्यासी भी
देश काल अनुसार हजारो वंश बनाते पंडित जी
मुछ मुड़ाकर घुम रहे थे अब जटा रखाये बैठे वे
कहीं रमाते भस्म कही पर अलख जगाते पंडित जी
रोप लिये कुछ वेटी-बंटी, घंटी-घंटे हिला रहे
बने पुजारी हलवा पुरी रेेलकर पचाते पंडित जी
लाख खिलाओ पत्थर को भगवान भला क्या खाता है
भोग लगाकर खुद ही सब पकवान उड़ाते पंडित जी
चोरी,डाका,कत्ल करो पर दान उन्हे देते जाओ
तो फिर हाथो हाथ स्वर्ग का टिकट दिलाते पंडित जी
उनके पुरखे बना गये है लाख बहाने खाने के
पोल मिले तो फिर खाने में झोल न खाते पंडित जी
लीला अपरंपार अकलिपत पार न कर पाते जय सिंह जी
खुद भी अपनी लीला का कोर्इ पार न कर पाते पंडित जी।
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जय सिंह