बुधवार, 29 अप्रैल 2015

रेलगाड़ी की जनरल बोगी ........


 भारतीय रेल की जनरल बोगी
पता नहीं आपने भोगी कि नहीं भोगी
एक बार हम भी गलती से कर रहे थे यात्रा
प्लेटर्फाम पर देखकर सवारियों की मात्रा
हमारे पसीने छूटने लगे
हम सामान उठाकर घर की ओर फूटने लगे
तभी एक कुली आया
मुस्कुरा कर बोला - सर अन्दर जाओगे क्या  ?
हमने कहा - तुम पहुँचाओगे क्या !
वो बोला - बड़े-बड़े र्पासल पहुँचाए हैं आपको भी पहुँचा दूंगा
मगर रुपये पूरे पचास लूँगा.
हमने कहा - पचास रुपैया ?
वो बोला - हाँ भैया
और दो रुपये आपके बाकी सामान के
हमने कहा - सामान नहीं है, अकेले हम हैं
वो बोला - बाबूजी, आप किस सामान से कम हैं !
भीड़ देख रहे हैं, कंधे पर उठाना पड़ेगा,
धक्का देकर अन्दर पहुँचाना पड़ेगा
वैसे तो हमारे लिए बाएँ हाथ का खेल है
मगर आपके लिए दाँया हाथ भी लगाना पड़ेगा
मंजूर हो तो बताओ
हमने कहा - देखा जायेगा, तुम उठाओ
कुली ने जय बजरंगबली का नारा लगाया
और पूरी ताकत लगाकर हमें जैसे ही उठाया
कि खुद ही जमीं पर  बैठ गया
दूसरी बार कोशिश की तो लेट गया
बोला - बाबूजी पचास रुपये तो कम हैं
हमें क्या मालूम था कि आप आदमी नहीं, बम हैं
भगवान ही आपको उठा सकता है
हम क्या खाकर उठाएंगे
आपको उठाते-उठाते खुद दुनिया से उठ जायेंगे !
तभी गाड़ी ने सीटी दे दी
हम सामान उठाकर भागे 
बड़ी मुश्किल से डिब्बे के अन्दर घुस पाए
डिब्बे के अन्दर का दृश्य घमासान था
पूरा डिब्बा अपने आप में हल्दी घाटी का मैदान था
लोग लेटे थे, बैठे थे, झुके थे, खड़े थे
जिनको कहीं जगह नहीं मिली, वो बर्थ के नीचे पड़े थे
हमने एक गंजे यात्री से कहा - भाई साहब
थोडी सी जगह हमारे लिए भी बनाइये
वो सिर झुका के बोला - आइये हमारी खोपड़ी पे बैठ जाइये
आप ही के लिए साफ़ की है
केवल दो रूपए देना, लेकिन फिसल जाओ तो हमसे मत कहना
तभी एक भरा हुआ बोरा खिड़की के रास्ते चढ़ा 
आगे बढा और गंजे के सिर पर गिर पड़ा
गंजा चिल्लाया - किसका बोरा है ?
बोरा फौरन खडा हो गया
और उसमें से एक लड़का निकल कर बोला
बोरा नहीं है बोरे के भीतर बारह साल का छोरा है
अन्दर आने का यही एक तरीका है
हमने आपने माँ-बाप और पड़ोसी से सीखा है
आप तो एक बोरे में ही घबरा रहे हैं
जरा ठहर तो जाओ अभी गददे में लिपट कर
हमारे बाप जी अन्दर आ रहे हैं
उनको आप कैसे समझायेंगे
हम तो खड़े भी हैं 
वो तो आपकी गोद में ही लेट जाएँगे
 एक अखंड सोऊ, चादर ओढ़ कर सो रहा था 
एकदम कुम्भकरण का बाप हो रहा था 
हमने जैसे ही उसे हिलाया 
उसकी बगल वाला चिल्लाया - 
ख़बरदार हाथ मत लगाना वरना पछताओगे 
हत्या के जुर्म में अन्दर हो जाओगे 
हमने पुछा- भाई साहब क्या लफड़ा है ? 
वो बोला - बेचारा आठ घंटे से एक टाँग पर खड़ा है 
और खड़े-खड़े इस हालत मैं पहुँच गया कि, अब पड़ा है 
आपके हाथ लगते ही ऊपर पहुँच जायेगा 
इस भीड़ में ज़मानत करने क्या तुम्हारा बाप आयेगा ?
एक नौजवान खिड़की से अन्दर आने लगा
तो पूरे डिब्बा मिल कर उसे बाहर धकियाने लगा
नौजवान बोला - भाइयों, भाइयों
र्सिफ खड़े रहने की जगह चाहिए
एक अन्दर वाला बोला - क्या ?
खड़े रहने की जगह चाहिए तो प्लेटर्फोम पर खड़े हो जाइये
जिंदगी भर खड़े रहिये कोई हटाये तो कहिये
जिसे देखो घुसा चला आ रहा है
रेल का डिब्बा सेन्ट्रल जेल हुआ जा रहा है !
इतना सुनते ही एक अपराधी चिल्लाया -
रेल को जेल मत कहो मेरी आत्मा रोती है
यार जेल के अन्दर कम से कम
चलने-फिरने की जगह तो होती है !
एक सज्जन फ़र्श पर बैठे हुए थे आँखें मूँदे 
उनके सर पर अचानक गिरीं पानी की गरम-गरम बूँदें 
तो वे सर उठा कर चिल्लाये - कौन है, कौन है 
साला पानी गिरा कर मौन है 
दिखता नहीं नीचे तुम्हारा बाप बैठा है ! 
क्षमा करना बड़े भाई पानी नहीं है 
हमारा छः महीने का बच्चा लेटा है कृपया माफ़ कर दीजिये 
और अपना मुँह भी नीचे कर लीजिये 
वरना बच्चे का क्या भरोसा ! 
क्या मालूम अगली बार उसने आपको क्या परोसा !!
अचानक डिब्बे में बड़ी जोर का हल्ला हुआ 
एक सज्जन दहाड़ मार कर चिल्लाये - 
पकड़ो-पकड़ो जाने न पाए 
हमने पुछा क्या हुआ, क्या हुआ ? 
वे बोले - हाय-हाय, मेरा बटुआ किसी ने भीड़ में मार दिया 
पूरे तीन सौ रुपये से उतार दिया टिकट भी उसी में था ! 
कोई बोला - रहने दो यार भूमिका मत बनाओ 
टिकट न लिया हो तो हाथ मिलाओ 
हमने भी नहीं लिया है 
गर आप इस तरह चिल्लायेंगे 
तो आपके साथ क्या हम नहीं पकड़ लिए जायेंगे?
वे सज्जन रोकर बोले - नहीं भाई साहब 
मैं झूठ नहीं बोलता मैं एक टीचर हूँ
कोई बोला - तभी तो झूठ है टीचर के पास और बटुआ ? 
इससे अच्छा मजाक इतिहास मैं आज तक नहीं हुआ !
टीचर बोला - कैसा इतिहास मेरा विषय तो भूगोल है 
तभी एक विद्र्याथी चिल्लाया - बेटा इसलिए तुम्हारा बटुआ गोल है !
बाहर से आवाज आई - गरम समोसे वाला
अन्दर से फ़ौरन बोले एक लाला 
 दो हमको भी देना भाई 
सुनते ही ललाइन ने डाँट लगायी - बड़े चटोरे हो ! 
क्या पाँच साल के छोरे हो ? 
इतनी गर्मी  में खाओगे ? 
फिर पानी को तो नहीं चिल्लाओगे ? 
अभी मुँह में आ रहा है समोसे खाते ही आँखों में आ जायेगा 
इस भीड़ में पानी क्या रेल मंत्री दे जायेगा ?
तभी डिब्बे में हुआ हल्का उजाला 
किसी ने जुमला उछाला ये किसने बीड़ी जलाई है ? 
कोई बोला - बीड़ी नहीं है स्वागत करो 
डिब्बे में पहली बार बिजली आई है 
दूसरा बोला - पंखे कहाँ हैं ? 
उत्तर मिला - जहाँ नहीं होने चाहिए वहाँ हैं 
पंखों पर आपको क्या आपत्ति है ? 
जानते नहीं रेल हमारी राष्ट्रीय संपत्ति है 
कोई राष्ट्रीय चोर हमें गच्चा दे गया है 
संपत्ति में से अपना हिस्सा ले गया है 
आपको लेना हो आप भी ले जाओ 
मगर जेब में जो बल्ब रख लिए हैं 
उनमें से एकाध तो हमको दे जाओ !
अचानक डिब्बे में एक विस्फोट हुआ 
हलाकि यह बम नहीं था 
मगर किसी बम से कम भी नहीं था 
यह हमारा पेट था उसका हमारे लिए संकेत था 
कि जाओ बहुत भारी हो रहे हो हलके हो जाओ 
हमने सोचा डिब्बे की भीड़ को देखते हुए 
बाथरूम कम से कम दो किलोमीटर दूर है 
ऐसे में कुछ हो जाये तो किसी का क्या कसूर है 
इसीलिए  रिस्क नहीं लेना चाहिए 
अपना पडोसी उठे उससे पहले अपने को चल देना चाहिए 
सो हमने भीड़ में रेंगना शुरू किया 
पूरे दो घंटे में पहुँच पाए 
बाथरूम का दरवाजा खटखटाया तो भीतर से एक सिर बाहर आया 
बोला - क्या चाहिए ? 
हमने कहा - बाहर तो आजा भैये हमें जाना है 
वो बोला - किस किस को निकालोगे ? अन्दर बारह लोग खड़े हैं 
हमने कहा - भाई साहब हम बहुत मुश्किल में पड़े हैं 
मामला बिगड़ गया तो बंदा कहाँ जायेगा ? 
वो बला - क्यूँ आपके कंधे पे जो झोला टँगा है
 वो किस दिन काम में आयेगा ... 
इतने में लाइट चली गयी 
बाथरूम वाला वापस अन्दर जा चुका था 
हमारा झोला कंधे से गायब हो चुका था 
कोई अँधेरे का लाभ उठाकर अपने काम में ला चुका था 
अचानक गाड़ी बड़ी जोर से हिली 
एक यात्री ख़ुशी के मारे चिल्लाया - अरे चली, चली
कोई बोला - जय बजरंग बली, कोई बोला - या अली 
हमने कहा - काहे के अली और काहे के बली ! 
गाड़ी तो बगल वाली जा रही है 
और तुमको अपनी चलती नजर आ रही है ? 
प्यारे ! सब नज़र का धोखा है 
दरअसल ये रेलगाडी नहीं 
भारत सरकार की रेल है 
हमारी ज़िन्दगी तो बस नेताओ के लिए खेल है .
जय सिंह 

मंगलवार, 17 मार्च 2015

बेटी बचाओ पर जय सिंह की कविता-------

बेटी बचाओ 

कोर्ट  में एक अजीब मुकदमा आया
एक सिपाही एक कुत्ते को बांध कर लाया
सिपाही ने जब कटघरे में आकर कुत्ता खोला
कुत्ता रहा चुपचाप,  मुँह से कुछ ना बोला..!
नुकीले दांतों में कुछ खून सा नज़र आ रहा था
चुपचाप था कुत्ता, किसी से ना नजर मिला रहा था
फिर हुआ खड़ा एक वकील, देने लगा दलील
बोला,  इस जालिम कुत्ते के कर्मो  से यहाँ मची तबाही है
इसके कामों को देख कर इन्सानियत भी घबराई है
ये क्रूर है, र्निदयी है,  इसने समाज में तबाही मचाई है
दो दिन पहले जन्मी एक कन्या को,  अपने दाँतों से खाई है
अब ना देखो किसी की बाट
आदेश करके उतारो इसे मौत के घाट
जज की आँख हो गयी लाल
तूने क्यूँ खाई कन्या, जल्दी बोल डाल
तुझे बोलने का मौका नहीं देना चाहता
लेकिन मजबूरी है, अब तक तो तू फांसी पर लटका पाता
जज साहब,  इसे जिन्दा मत रहने दो
कुत्ते का वकील बोला,  लेकिन इसे भी तो कुछ कहने दो
फिर कुत्ते ने मुंह खोला, और धीरे से बोला
हाँ,  मैंने वो लड़की खायी है
अपनी कुत्तानियत निभाई है
कुत्ते का र्धम है ना दया दिखाना
माँस चाहे किसी का हो,  देखते ही खा जाना
पर मैं दया-र्धम से दूर नही
खाई तो है,  पर मेरा इसमें कोई कसूर नही
मुझे याद है,  जब उस  लड़की  को  कूड़े के ढेर में पाई थी
और कोई नही, उसकी माँ ही उसे फेंकने आई थी
जब मैं उस कन्या के गया पास
उसकी आँखों में देखा भोला विश्वास
जब वो मेरी जीभ देख कर मुस्काई थी
कुत्ता हूँ,  पर उसने मेरे अन्दर इन्सानियत जगाई थी
मैंने सूंघ कर उसके कपड़े,  वो घर खोजा था
जहाँ माँ उसकी थी,  और बापू भी चैन से सोया था
मैंने भू-भू करके उसकी माँ को जगाई
पूछा तू क्यों उस कन्या को फेंक कर आई
चल मेरे साथ,  उसे लेकर आ
भूखी है वो,  उसे अपना दूध पिला
माँ सुनते ही रोने लगी
अपने दुख सुनाने लगी
बोली,  कैसे लाऊँ अपने कलेजे के टुकड़े को
तू सुन,  तुझे बताती हूँ अपने दिल के दुखड़े को
मेरी सासू मारती है तानों की मार
मुझे ही पीटता है,  मेरा भरतार
बोलता है लङ़का पैदा कर हर बार
लङ़की पैदा करने की है सख्त मनाही
कहना है उनका कि कैसे जायेंगी ये सारी ब्याही
वंश की तो तूने काट दी बेल
जा खत्म कर दे इसका खेल
माँ हूँ,  लेकिन थी मेरी लाचारी
इसलिए फेंक आई,  अपनी बिटिया प्यारी
कुत्ते का गला भर गया
लेकिन बयान वो पूरे बोल गया....!
बोला,  मैं फिर उल्टा आ गया
दिमाग पर मेरे धुआं सा छा गया
वो लड़की अपना, अंगूठा चूस रही थी
मुझे देखते ही हंसी,  जैसे मेरी बाट में जग रही थी
कलेजे पर मैंने भी रख लिया था पत्थर
फिर भी काँप रहा था मैं थर-थर
मैं बोला,  अरी बावली, जीकर क्या करेगी
यहाँ दूध नही,  हर जगह तेरे लिए जहर है,  पीकर क्या करेगी
हम कुत्तों को तो,  करते हो बदनाम
परन्तु हमसे भी घिनौने,  करते हो काम
जिन्दी लड़की को पेट में मरवाते हो
और खुद को इंसान कहलवाते हो
मेरे मन में,  डर कर गयी उसकी मुस्कान
लेकिन मैंने इतना तो लिया था जान
जो समाज इससे नफरत करता है
कन्या हत्या जैसा घिनौना अपराध करता है
वहां से तो इसका जाना अच्छा है
इसका तो मर जाना अच्छा है
तुम लटकाओ मुझे फांसी,  चाहे मारो जूत्ते
लेकिन खोज के लाओ,  पहले वो इन्सानी कुत्ते।
लेकिन खोज के लाओ, पहले वो इन्सानी कुत्ते।।


जय सिंह 

तुम्हे पाने की जिद

तुम्हे पाने की जिद
तुम्हे पाने की दिल में, जिद जो उठी नही होती
मेरी दुनिया इस तरह हरगीज लुटी नही होती
भीगी-भीगी आंखे है, सुबह से शाम तक दिलबर
तेरी चाहत जो न होती, ये बारिश नही होती
तेरी यादें  हर पल मुझे बेचैन करती है
मै पागल कैसे होता, अगर साजिश नही होती
हर पल अंधेरे से, यूं  दिलों के है भरे कमरे
दिल के दर पे कोर्इ डोर बंधी नही होती
'जय' तेरी चाहत कैद है, दिन-रात उसकी सांसो मेें
ये दिल यूं पत्थर न होता, जो उनसे रंजिश नही होती।

आपका - जय सिंह 

मुझे देख कर


मुझे देख कर अब तूमको, मुस्कुराना नहीं पड़ेगा,
अपना प्यार मुझ पे, अब जताना नहीं पड़ेगा।
दूर चला जाऊँगा मै, सारे रिश्ते तोड़ के,
लाख जतन तुम करती रहना, टुटे गाँठों को जोड़ के।
अब ना नजर आऊँगा मै, इन आँखों के पोर से।
मुझसे अब तूमको, नजरे चुराना नहीं पड़ेगा,
मुझे देख कर अब तूमको, मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।
सो जाऊँगा कभी मै मौत की गहरी नींद में,
रुह बना मै रोज मिलूँगा, तूमसे सपनों के हिलोड़ में।
लाख जतन तुम करती रहना, अपने हाथ पाँव जोड़ के,
कभी भी लौट के ना आऊँगा मै, इन आँखों को खोल के।
लोरी गा के रात में, मुझे सुलाना नहीं पड़ेगा,
अब तूमको मुझे जगाना नहीं पड़ेगा।
मुझे देख कर अब तूमको, मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।
जब कभी याद आऊँगा मै, बदली बन कर फलक पड़ छा जाऊँगा मै।
यादों का सरताज बना मै, अपना वो गीत फिर गुनगुनाऊँगा,
फिर से अब यूँ ही तूमको, मेरा वो गीत गुनगुनाना पड़ेगा।
वीणा के हर तार पे पाँव रख कर,
फिर से अब तूमको, मेरे लिए आना नहीं पड़ेगा।
मुझे देख कर अब तूमको,  मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।
बादल बन के नभ में मै, बारिश के साथ धरा पर बरसता रहूँगा,
टीप टीप बूँदों सा बना मै, नदियों सा सागर को तरसता रहूँगा।
लाख जतन तुम करती रहना, बूँद बूँद को जोड़ के,
बूँद बूँद से सागर बना मै, अब तो सूख ना पाऊँगा।
मेरे भीगे तन को अब तूमको, सूखाना नहीं पड़ेगा।
मुझे देख कर अब तूमको, मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।
नये फूल सा हर मौसम में मै, खिलता और मुरझाता रहूँगा,
तेरे प्यार में गीतकार बना मै, रोज नये गीत बनाता रहूँगा।
लाख जतन तुम करती रहना, बाग के फूल को तोड़ के,
अब ना गाऊँगा मै, इन होंठों के शोर से।
मेरे जुदाई पे अब तूमको, आँसू बहाना नहीं पड़ेगा।
मुझे देख कर अब तूमको, मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।
इंद्रधनुष के सात रंगों में मै, रंगीला हो जाऊँगा,
रग रग में अब रंग रंग से, रंगोली बन जाऊँगा।
लाख जतन तुम करती रहना, मेरे रग से रंग निचोड़ के,
नहीं मिल पाऊँगा मै, रंगों के झनझोर से।
मेरे तन पे अब तूमको, रंग लगाना नहीं पड़ेगा।
मुझे देख कर अब तूमको, मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।
नये देश और नये वेश में, परदेशी हो जाऊँगा,
आज यहाँ कल जाने कहाँ, अपना डेरा बसाऊँगा।
लाख जतन तुम करती रहना, तिनकों से घर जोड़ के,
अब ना रह पाऊँगा मै, अपनी दुनिया छोड़ के।
मेरे साथ अब तूमको, घर बसाना नहीं पड़ेगा।
मुझे देख कर अब तूमको, मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।
आँखों का आँसू बन के मै, तेरी आँखों में ठहर जाऊँगा,
नेत्र जलद में नीर बना मै, रोज गोते लगाऊँगा।
लाख जतन तुम करती रहना, रो रो के शाम तक भोर से,
आँखों से बह पाऊँगा न मै, उस सुरीली दुनिया को छोड़ के।
मेरे लिए अब तूमको, आँसू बहाना नहीं पड़ेगा।
मुझे देख कर अब तूमको, मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।
रात में मद्धम प्रकाश बना मै, तेरे काले बालों में समा जाऊँगा,
निशा काल में चाँद बना मै, रोज तेरे छत पे आऊँगा।
लाख जतन तुम करती रहना, लौट आऊँ मै इस घनघोर से,
तारों को छोड़ आ पाऊँगा न मै, उस जादुई नगरी को छोड़ के।
मेरे लिए अब तूमको, सपने संजोना नहीं पड़ेगा।
मुझे देख कर अब तूमको, मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।
दुनिया में प्यार का दूत बना मै, हर पल प्यार लुटाऊँगा,
दुष्ट तन में प्यारा सा दिल मै, प्यार का पाठ पढ़ाऊँगा।
लाख जतन तुम करती रहना, कि मै गुजरुँगा तेरी ओर से,
तेरी ओर अपना रुख मोड़ पाऊँगा न मै, टुटे हुए हर बंधन को जोड़ के।
ऐसा नाम कर जाऊँगा मै, सबके दिलों में नजर आऊँगा मै।
मुझे देख कर अब तूमको, नजरे चुराना नहीं पड़ेगा,
मेरे लिए अब तूमको, कही सर झुकाना नहीं पड़ेगा।
मुझे देख कर अब तूमको, मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।

आपका – जय सिंह  

मंगलवार, 22 जुलाई 2014

तेरी जाति क्या है रे ?

बच्चे होते है कोरे कागज की तरह
मन होता है कोमल और सच्चा
तभी तो सब कहते है की ये है बच्चा
उनको नहीं होती है जीवन की कोई परवाह
न वर्तमान का भय  न भविष्य की चिंता
उनको नहीं पता होता है क्या है हालत क्या है व्यवस्था
बातों में बहलना बच्चों का स्वभाव होता है
मौन का सन्नाटा उनके लिए अभिशाप होता  है
प्रकृति की गोद में उद्धम किए बिना उन्हें रहा नही जाता
सारी प्रकृति उन्हें माँ की तरह लगती है
उन दिनों मास्टर जी
बच्चे, बुड्ढे , औरत, युवक, के स्वभाव को समझता था
पर आज ऐसा सर्वनाश हुआ की कुछ नहीं जानते
और बच्चो के सामाजिक भावना को है ललकारते
अधिकांश बाते न ही जानते है और न ही जानने की चेष्टा करते है
बच्चे के मन को बहलाने की आशय से
यूँ ही पूछ लिया  "तेरी जाति क्या है रे "?
सवाल सुनते है बच्चे का शरीर में कपकपी सी हो गई
बच्चा कुछ बताना चाहता था
पर उसकी हिम्मत ने जबाब दे दिया
और कुछ बताने से पहले है उसकी शाहस को हमेशा के लिए मार दिया |

..........................जय सिंह 

शुक्रवार, 9 मई 2014

माँ....

             माँ....


माँ.... तेरी गोद
मुझे मेरे अनमोल होने का एहसास कराती है |
माँ.... तेरी हिम्मत
मुझे संसार जितने का विश्वास दिलाती है |
माँ.... तेरी सीख
मुझे आदमी से इन्सान बनाती है |
माँ.... तेरी डॉट
मुझे रोज़ नई राह दिखाती है |
माँ.... तेरी सूरत
मुझे मेरी पहचान बताती है |
माँ.... तेरी पूजा                  
मेरी हर पाप मिटाती है |
माँ.... तेरी लोरी
अब भी मीठी नींद सुलाती है |
माँ.... तेरी एक मुस्कान
रोज़ सारी  थकान मिटाती है |
माँ.... तेरी याद
हर पल मुझे बेचैन कर जाती है |
माँ.... ये तेरी प्यारी तस्वीर
मेरे अकेलेपन को दूर भगाती है ||
माँ.... ओ मेरी माँ..... |

आपका ---- जय सिंह 

रविवार, 29 सितंबर 2013

शादियों का मौसम नजदीक आ रहा है




शादियों का मौसम नजदीक रहा है
हर दिन नया न्योता घर पर रहा है
बिचौलिए द्वारा लड़की को
सुशील,सुन्दर,गुणवती,रूपवती और
प्यार करने वाली बताया जा रहा है
मुस्कुराती खुबसुरत लड़की की
साथ में अनेक पोज में फोटो खुब रहा है
मुझे भी एक दोस्त की गुजरा जमाना याद रहा है
कुछ साल पहले उसने भी शादी रचाई थी
शादी उसी लड़की से होगी, जीत घर वालो से पाई थी
यही थी उसकी आखिरी जीत जो उसने पाई थी
शादी के बाद तो, चुम्बन बसहारसे पाई थी
शक्ल जो उन्होंनेमुहं दिखाईके समय ऐसी बनाई थी
असल तेवरों में उनके, झलक उसने तब पाई थी
पूरे एक साल तक दी थी उसने -एम०आई०
सात दिन के उस हनीमून की
जो विदेश में मनाई थी
यूं तो बाज़ार हर हप्ते जाता है
भर-भर कर सामान हमेशा घर भी लाता है
पर कब की थी खुद की खरीददारी
याद करने में दिमाग पर थोड़ा जोर लग जाता है
उसे क्या है पहनना, कपड़े भी मैडम के हाथों तय किया जाता है
ड्रेस तो बस एक ही ली जाती है,
उनकी पत्नी को पसंद पांच घंटे में आती है
शोपिंग में हमेशा नाराज़ हो जाती है
तोहमत भी हमेशा दोस्त पर ही आती है
शॉपिंग इतनी हो चुकी
थक कर खाना अब कहाँ बनायेंगे
पास में ही रेस्टोरेंट है डिअर
चलो डिनर कर के ही घर जायेंगे
फरमाइशें और पत्नी
पर्यावाची से नज़र अब आते है
शादी के बाद पत्नी ही सही होती है
अपने सारे लोजिक गलत से नज़र आते है
होता होगा कभी .................
जब होता होगा की पत्नी डर जाती थी
आँखों में ढेर सारा आंसू लाती थी
सिंघनी सी आज वो दहाड़ती है
पतिदेव बकरी जैसी मिमियाते है
मायके आज कल कहा किसको जाना होता है
बोर हुए माँ-बाप, बिटिया के घर हॉलिडे मनाना होता है
संभल कर आप हाथ रखे, दर्द से हालत बदल जाते है
दोस्तों सोच समझ कर कीजिये शादी
शादी के बाद सारे समीकरण बदल जाते है
पत्नी की सारी जिम्मेदारी आप पर
और आप उनकी जिम्मेदारी में कहीं नज़र नहीं आते है ||

? जय सिंह
(युवा कवि, व्यंगकार, कहानीकार)



|| हिन्दी भाषा को प्रणाम ||


हिन्दी भाषा को प्रणाम, मातृ भाषा को प्रणाम
हिन्दुस्तान की जुबान, हिन्दी भाषा को प्रणाम
मेरे देश की महान हिन्दी भाषा को प्रणाम
मीरा के घुंघरू हैं इसमे, सूरा का इकतारा
कबीरा के ताने बाने, भूषण का धवल दुधारा
हुलसी के तुलसी का इसमें, रामचरित मानस है
रत्नाकर रसखान देव का, फैला विमल सुयश है
गोरखनाथ की वाणी, संत रविदास ने जानी
नागरी लिपि की मधु मुसकान, हिन्दी भाषा को प्रणाम
गंगा के तट लिखी महाकवि बच्चन ने मधुशाला
तीर्थराज की सड़कों पर पत्थर तोड़ते निराला
संगम जहा त्रिवेणी का है वहां महादेवी है
काश्मीर से अंतरीप तक सब हिन्दी सेवी है
प्रेमसागर के लल्लू लाल, हिन्द हिन्दी के कवि इकबाल
अपनी वाणी रस की खान, हिन्दी भाषा को प्रणाम
प्रेमचन्द के होरी धनिया का गोदान यहां है
और मैथलीशरण गुप्त का उर्मिलगान यहां है
दिनकर की हुंकार बिहारी की झंकार यहां है
हिन्दी के माथे की बिंदी, सभी को प्यारी है यह हिन्दी
देव वाणी की प्रिय संतान, हिन्दी भाषा को प्रणाम
हिन्दी में ही लिखा कि झण्डा उचा रहे हमारा
लिखा की सारे जहां से अच्छा हिन्दोसतां हमारा
हिन्दी में ही लिखा सखी रे, मोय नंदलाला भायो
हिन्दी में ही लिखा री मैया, मैं नही माखन खायो
हिन्दी जनगण का नारा है, राष्ट्र के जीवन की धारा है 
अपनी आनबान ह शान, हिन्दी भाषा को प्रणाम
प्रकृति सुंदरी की पूजा में पंत हुए सन्यासी
कामायनी काव्य की साक्षी है प्रसाद की काशी
स्वर्णपृष्ठ पर लिखी सुभद्रा ने कविता कल्याणी
सन सत्तावन की मरदानी झांसी वाली रानी
हिन्दी हल्दी की घांटी है हिन्दी विप्लव की माटी है
आजादी की अग्र कमान हिन्दी भाषा को प्रणाम
अपनी वाणी रस की खान हिन्दी भाषा को प्रणाम

---  जय सिंह  ----
(युवा कवि, व्यंगकार, कहानीकार)

बुधवार, 28 अगस्त 2013

Happy Friendship Day



 Happy Friendship Day

कई बार देखा है
जब बहुत बहुत उदास होते हैं
बिलकुल अकेले होते हैं
तब कोई एक दोस्त
जुगनू सा चमकता हुआ आता है
अपनी दो बातों से
सारा कष्ट हर ले जाता है

अब तो ऐसा है
आशान्वित सा रहता है मन
जब
बहुत दुखी होता है
कि कोई बहुत अच्छी बात
होने वाली है
रोती आँखें हंस कर
फिर और रोने वाली है

किसी पुराने रचित छंद सा
अपना ही कोई
कुछ ऐसी बातें कह जाता है
कि
जीवन के प्रति अविश्वास
तुरंत ढ़ह जाता है

याद आने लगता है
माटी का दिया
जो कभी गंगा की लहरों में
प्रवाहित किया था
और देर तक निहारते रहे थे
कि देखें कहाँ तक जाता है
कहो क्या वो लम्हा
आपको भी याद आता है?

याद आती है
साथ बितायी कुछ एक
सुन्दर घड़ियाँ...
जिनके बलबूते
देखो वर्षों बाद भी मात्र चंद बातें कर के
हम जोड़ लेते हैं सुनहरे पलों की कितनी ही लड़ियाँ...

कभी कभी ही
ऐसा
होता है
पहचान लम्बी न हो
पर फिर भी कोई
बिलकुल अपना हो लेता है

'आप' की औपचारिकताओं से ही
हम निकल नहीं पाए थे
कि वक़्त बीत गया
जितनी कवितायेँ सुनी थी आपने 
वह सब वहीँ प्रांगन में
पीछे छूट गया

अब समेटेंगे हम
सबकुछ
धीरे धीरे!
उन अनमोल घड़ियों को
यहीं से जी लेंगे...
जो जी गयीं थीं ''आईआईएमसी'' तीरे!!
आप सभी प्यारे दोस्तों याद आती है Happy Friendship Day


जय सिंह