रविवार, 24 मार्च 2013

मै तुम्हारे रंग में अब रंग गया हूँ




मै तुम्हारे रंग में अब रंग गया हूँ,
संग तेरे ही तुम्ही में ढ़ल गया हूँ।

कौन सी पहचान मेरी कौन हूँ मै?
तुम हो मेरे या मै तेरा हो गया हूँ।

ना रही अब सुध मुझे अपने डगर की,
राह,मँजिल,लक्ष्य को मैने भूलाया,
बूँद बन कर बह गया जब आँख से दिल,
तब कही जाकर है मैने तुमको पाया।

मै हूँ तुझमे या कि तेरे ही ह्रदय का,
मेरे ह्रदय में बन बसेरा हो गया हूँ।

मै तुम्हारे रंग में अब रंग गया हूँ,
संग तेरे ही तुम्ही में ढ़ल गया हूँ।

मौन की मालाओं में जो शब्द तुमने,
प्रेम से अपने था स्नेहीत कर पिरोया,
राग से संगीत की वो गूँज जिसको,
मेरे मन की बाँसुरी से तुमने गाया।

ढ़ुँढ़ते है साज अब तो बस तुम्ही को,
साँस बन कर आज तेरी धड़कनों में,
प्राण की पहचान बनकर मै तुम्हारे,
रग में रक्त रक्त सा बन खो गया हूँ।

मै तुम्हारे रंग में अब रंग गया हूँ,
संग तेरे ही तुम्ही में ढ़ल गया हूँ।

है प्रवेश मेरे ह्रदय का तेरे ह्रदय में,
आत्मा से है परमात्मा का मिलन,
मेरा,तेरा हो जाना है स्वप्न मिथ्या,
ये तो है "मै" का "तुम" को नमन।

भूल कर अब लौ सी अपनी जलन को,
मोम सा बन हर पल तुझमें गल गया हूँ।

मै तुम्हारे रंग में अब रंग गया हूँ,
संग तेरे ही तुम्ही में ढ़ल गया हूँ।

                                           आपका – जय सिंह

सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

डायरी


डायरी
करती है बातें
बीते जमानों की
दूनिया की, इन्सानों की
झुठी कलंक बदनामी की
बेगुनाह लड़की की बरबादी की
आज की, कल की
एक-एक पल की
खुशियों की, गमों की
फूलों की, बमों की
पिछले अच्छे कर्मो की
पवित्र रिश्तो के धर्मो की
जीत की, हार की
प्यार की, मार की
क्या तुम नही सुनोगे
इस डायरी की बातें ?
डायरी कुछ कहना चाहती है
तुम्हारे पास रहना चाहती है
डायरी में गोपियां खिलखिलाती है
डायरी में आशिकों का जीवन चहचहाती है
डायरी करती है बातें
हंसी की, सौगात की
गाली की, बौछार की
रिश्ते की, अपमान की
अपनों की औकात की
कुछ छड़ों की बात की
मधुमास की प्यारी रात की
मन में शक की आवाज की
डायरी में झरने गुनगुनाते है
परियों के किस्से सुनाते है
डायरी में बहुत बड़ा राज़ है
टूटे हुए दिल की आवाज है
जय के प्यार का पैगाम है
डायरी का कितना बड़ा संसार है
डायरी में अनुभव की भरमार है
क्या तुम इस संसार में
नहीं जाना चाहोंगे ?
डायरी कुछ कहना चाहती है
तुम्हारे दिल में बसना चाहती है।

                                                           आपका--------------- जय सिंह

मंगलवार, 4 सितंबर 2012

प्रणाम मेरे अध्यापक ..


प्रणाम मेरे अध्यापक ..

प्रणाम मेरे अध्यापक
प्रणाम मेरे उद्वारक
जननी और जनक से
ज्यादा आपका सम्मान है
मेरा होना इत्तिफाक
हो सकता है लेकिन
मेरा बनना तो आप की
साधना का परिणाम है
मै जो भी हूँ बना आज
सब आपका करम है ..
जो कुछ भी बन पाया हूँ
मै उसके योग्य तो नहीं था
पर आपका आशीर्वाद
हर पल साथ रहता है
प्रणाम मेरे संस्थापक
प्रणाम मेरे अध्यापक
याद आ रहा है वो प्रार्थना
करना भगवान से
की आप की साइकिल में पंक्चर हो जाये
और आप स्कूल न आ पाए
और जब कभी आप नहीं आते
तो हम ख़ुशी से झूम उठते
पर आप ने तो सदैव कामना
हमारे भले की ही की होगी
प्रणाम उच्च विचारक
प्रणाम् मेरे अध्यापक
आपकी जुबान से शब्द नहीं
हीरे मोती गिरा करते थे
हम नादाँ थे जो उनका
मोल न समझ पाए
आपकी डांट में औचित्य था
आपकी मार में प्रेम भाव
प्रणाम मेरे पथ प्रदर्शक
प्रणाम मेरे अध्यापक
------ जय सिंह 

शिक्षक दिवस पर विशेष



 आपके अशिर्बाद से ,
तालीम से और ज्ञान से
उपदेश से , उसूल से
सार और व्याख्यान से
अप्रमाण जीवन को मिली 
परिधि नई,नव दिशा
श्वेत मानस पटल पर 
स्वरूप विद्या का धरा
डगमगाते कदम को 
नेक राह दीआधार दिया
संकीर्ण ,संकुचित बुद्धि को 
अनंत सा विस्तार दिया
पहले सेमल से कपास 
पश्चात कपास को सूत कर 
रूई को आकृति एक 
और बाती सा सुन्दर नाम दिया
कभी आचार से ,
सदाचार से ,
कभी नियम-दुलार से
उद्दंडता को दंड देकर 
हमे विकसित कियाआयाम दिया.
निर्लोभ रह देते रहे सब ,
न कुछ अभिलाषा रही
पात्र जीवन मे सफल हो 
शायद यही आशा रही
आपके ऋण से उऋण किसी हाल हो सकते नहीं
कुछ शब्द मे अनुसंशा कर जज़्बात कह सकते नहीं
गुरुवर मेरे सिर पर पुनः 
आशीषमय कर रख दीजिये
जय इतना आगे बढे 
उतना मार्गदर्शन दीजिये
जय सिंह