गूँगा, बहरा, अन्धा, अदृश्य
क्या मेरी तकदीर लिखेगा।
मै ही उसको न मानू तो
फिर मुझको क्यो तंग करेगा।
सुनते है शैतान लगा है
लेकिन है लोकल बस्ती का।
अमेरिका जापान से आकर
भूत किसी को क्यों नही लगा है।
हिन्दु का मुस्लिम को लगता
मुस्लिम का हिन्दु को लगता।
इसमे भी लगता है लफड़ा
जैसे हो आपस का झगड़ा।
ईसाइयों का नही सुना है
जैन धर्म का नही लगा है।
बौद्ध धर्म मे नही मान्यता
देवी देवता दूर भगा है।
पुनर्जन्म का जिक्र नही है
भूतो को भी फिक्र नही है।
बौद्धो से आकर टकराये
बौद्धो के घर भी तो जाये।
एक अरब आबादी देश की
जिसमे तेतीस करोड देवता है।
खेत जोतने कोई न जावे
बैठे-बैठे इन्हे खिलाये।
कैसे मिटे गरीबी देश की
एक तिहाई देवता खा जाये।
मन्दिर का निर्माण कराये
मस्जिद का निर्माण कराये।
भूत बिचारे बेघर कैसे
बीडी पीकर खुश हो जाते।
अन्डा नीबू नही चढाते
देवता इनको मार लगाते।
पिछडों या शुद्रो मे आते
इसलिये नही पूजे जाते।
बकरा, मुर्गा, देवता खाते
लगता ये सवर्णो मे आते।
देव स्थल पर चढ नही सकते
ये भी जाती धर्म मानते।
कुछ देवता शाकाहारी है
लगता कुछ मासाहारी है।
पैदल लगता कोई न चलता
सबकी अलग सवारी है।
दुर्गा माता शॆर पर चढती
लक्ष्मी उल्लू से भारी है।
सरस्वती माता कमल विराजी
गणेश ने चूहे की जान निकाली है।
घोडे पर सैयद चढ. बैठे
शंकर की बैल सवारी है।
कहाँ कहाँ से पैदा हो गये
भैया ये प्रश्न से भारी है।
नाभि, भुज, मुख से पैदा
तडपी कोख. बेचारी है।
.........जय सिंह
वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक