शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016

आरक्षण पर हाए तौबा करने वालों पर ..................


आरक्षण पर हाए तौबा
करने वालों पर थू है।
भेदभाव का दंभ सदा ही
भरने वालों पर थू है।।

पांच हजार सालों तक पशु 
से बदतर जीवन जीया
झूठन खाई उतरन पहनी
जाने कैसे जख्मों को सीया
समानता.बन्धुता आने से
डरने वालों पर थू है।।

रोज नया शिगूफा छोड़
अपनी सियासत चमकाते है
साम्प्रदायिकता में डूब के
ये घातक राग ही गाते हैं
बाबा साहब का दिया खा के
हराम करने वालों पर थू है।।

पूना पैक्ट अन्यायी समझौता
गांधी हमको लूट गया
मूलनिवासी हम भारत के
हमारा हक पीछे छूट गया
जुल्मी को ही लानत नहीं
जरने वालों पर थू है।।

आरक्षित सीटों से जीत
विधायक सांसद बन जाते हैं
आरक्षण विरोधी आचरण से
अपने आकाओं को भाते हैं
बाबा साहब की नेक कमाई
चरने वालों पर थू है।।

सिल्ला भारत का संपन्न वर्ग
गरीबों को है कोस रहा
गरीब सोया चिरनिद्रा में
जाने कब से बेहोंश रहा
बहुजन समाज की एकता
हरने वालों पर थू है।।

आरक्षण पर हाए तौबा
करने वालों पर थू है।
भेदभाव का दंभ सदा ही
भरने वालों पर थू है।।

जय सिंह 
वरिष्ठ  पत्रकार,कवि एवं  लेखक 

मरूस्थल से भी जल निकलेगा

कोशिश कर, हल निकलेगा।
आज नही तो, कल निकलेगा।
अर्जुन के तीर सा सध,
मरूस्थल से भी जल निकलेगा।।
मेहनत कर, पौधो को पानी दे
बंजर जमीन से भी फल निकलेगा।
ताकत जुटा, हिम्मत को आग दे
फौलाद का भी बल निकलेगा।
जिन्दा रख, दिल में उम्मीदों को
गरल के समन्दर से भी गंगाजल निकलेगा।
कोशिशें जारी रख कुछ कर गुजरने की
जो है आज थमा थमा सा जो, 
चल ओ भी हल  निकलेगा।।
 *****जय सिंह *****

दूर खड़े क्या सोच रहे हो




उठो संगठित होकर के सब
अपनी इज्जत अपनी अस्मत
अपनी लाज बचाओ  रे
दूर खड़े क्या सोच रहे  हो
सड़कों  पर आ जाओ  रे 
आग लगी है कहीं अभी दूर तो
घर तक भी आ सकती है 
आज बिरादर झुलस रहा है 
कल तुमको झुलसा सकती है
उठो संगठित होकर के सब
भड़़की आग बुझाओ  रे
दूूर खड़े क्या सोच रहे हो
सड़को  पर आ जाओ   रे
कुत्ते बिल्ली समझ के हमको 
आतातायी  मार  रहे है 
कायर बन कर छुुपे घरों में
हम बैठे फुफकार  रहे है 
दलने पिसने सेे अच्छा  है
मिट्टी में  मिल जाओ  रेे
दूूर खड़े क्या सोच रहेे हो
सड़को पर आ जाओ   रे
  
रोक नही सकती है 
हम पर होते अत्याचारो को
वोट के  बल पर धूल चटा दो
इन जालिम सरकारों  को
न्याय मिलेेगा तब ही जब 
अपनी  सरकार बनाओ रे
दूर खडे क्या सोच रहे  हो
सड़कों पर आ जाओ  रेे
रोक सको तो बढ़ कर रोको
खून  के जिम्मेदारों  को
रोको,रोको दलित वर्ग पर 
बढ़ते  अत़्याचारो  को 
उठोे संगठित आँधी बनकर
अम्बर तक छा जाओ रेे
दूर खड़े क्या ताक रहे हो
सड़कों  पर आ जाओ रे

 ***** जय सिंह*****

क्रांति का पैगाम था, रोहित वेमुला नाम था

वो मर्द था
वो मर्द था वो मर्द था
वो मर्द था वो मर्द था।
सीने में जिसके दर्द था।।
वो टकराया सरकारों से
मनुवादी वाचाल गद्दारों से
दंश मनुवाद का बेदर्द था।
वो मर्द था वो मर्द था।।
झुकना उसने सीखा नहीं
रुकना उसने सीखा नहीं
सच पर चढ़ गया गर्द था।
वो मर्द था वो मर्द था।।
धारा के विरुध लड़ता रहाए
वैरी के सीने पे चढ़ता रहाए
वंचितों का वो हमदर्द था।
वो मर्द थाए वो मर्द था।।
रोहित वेमुला नाम था
वो क्रांति का पैगाम था
आखिर टूट गया जर्द था।
वो मर्द था वो मर्द था।।
सिल्ला रोए जार- जार
तूं याद आए बार-बार
निभा गया वो फर्ज था।
वो मर्द था  वो मर्द था।।
***** जय  सिंह*****

तुम तो पापी पाकिस्तान से ताल ठोकने वाले थे

पठानकोट एयरबेस पर हुए आतंकी हमले पर कड़ा कदम उठाने की सत्ताधीशों से अपील करती नई कविता
युद्ध  टले उस दुश्मन को फुसलाना बहुत जरुरी था
ये माना लाहौर तुम्हारा जाना बहुत जरुरी था
विपक्षियों के आगे होती नाकामी से बचना था
युद्ध थोपने वाली घातक बदनामी से बचना था । 
अटल सरीखा तुमने भी भरकस प्रयास कर डाला जी
लेकिन नहीं सुलझ पायेगा ये मकड़ी का जाला जी
बगुले वेद मंत्र पढ़ करके  हंस नही हो सकते हैं
घास चबाकर के सियार गौ वंश नही हो सकते हैं । 
गधे कभी योगासन करके अश्व नही हो पाएंगे
कौए हरगिज़ नही कोकिला स्वर में गीत सुनाएंगे
 बुद्ध और अम्बेडकर  के भारत का फिर से सम्मान हुआ
छुरा पीठ पर फिर से खाया, घायल 'कोट -पठान' हुआ
कायरता का तेल चढ़ा है,  लाचारी की बाती पर
दुश्मन नंगा नाच करे है, भारत माँ की छाती पर
दिल्ली वाले इन हमलों पर दो आंसू रो देते हैं
कुत्ते पांच मारने में, हम सात शेर खो देते हैं
सत्ता में आने से पहले, जान झोंकने वाले थे
तुम तो पापी पाकिस्तान  से ताल ठोकने वाले थे
सत्ता मिलते ही लेकिन ये अब कैसी लाचारी है
माना तुम पर बहुत बड़ी भारत की ज़िम्मेदारी है
उठो बढ़ो आगे, भारत की माटी का उपकार कहे
हर हमले में मरने वाले सैनिक का परिवार कहे
अल्टीमेटम आज थमा दो, आतंकी सरदारों को
भारत फिर से नही सहेगा, भाड़े के हत्यारों को
बाज अगर जल्दी ना आये,  तुम अपनी करतूतों से
ये इस्लामाबाद पिटेगा, हिंदुस्तानी जूतों से
एटम बम दो चार बनाकर कब तक यूँ धमकायेगा
अगर पहल हमने कर दी, तू जड़ से ही मिट जाएगा
छप्पन इंची सीने को अब थोडा और बढ़ाओ जी
सेनाओं को खुली छूट देकर उस पार चढ़ाओ जी
वर्ना तुम भी नामर्दी के रोगों से घिर जाओगे
कुर्सी से गिरने से पहले नज़रों से गिर जाओगे।।।।।
      
@ जय सिंह