मंगलवार, 17 मार्च 2015

बेटी बचाओ पर जय सिंह की कविता-------

बेटी बचाओ 

कोर्ट  में एक अजीब मुकदमा आया
एक सिपाही एक कुत्ते को बांध कर लाया
सिपाही ने जब कटघरे में आकर कुत्ता खोला
कुत्ता रहा चुपचाप,  मुँह से कुछ ना बोला..!
नुकीले दांतों में कुछ खून सा नज़र आ रहा था
चुपचाप था कुत्ता, किसी से ना नजर मिला रहा था
फिर हुआ खड़ा एक वकील, देने लगा दलील
बोला,  इस जालिम कुत्ते के कर्मो  से यहाँ मची तबाही है
इसके कामों को देख कर इन्सानियत भी घबराई है
ये क्रूर है, र्निदयी है,  इसने समाज में तबाही मचाई है
दो दिन पहले जन्मी एक कन्या को,  अपने दाँतों से खाई है
अब ना देखो किसी की बाट
आदेश करके उतारो इसे मौत के घाट
जज की आँख हो गयी लाल
तूने क्यूँ खाई कन्या, जल्दी बोल डाल
तुझे बोलने का मौका नहीं देना चाहता
लेकिन मजबूरी है, अब तक तो तू फांसी पर लटका पाता
जज साहब,  इसे जिन्दा मत रहने दो
कुत्ते का वकील बोला,  लेकिन इसे भी तो कुछ कहने दो
फिर कुत्ते ने मुंह खोला, और धीरे से बोला
हाँ,  मैंने वो लड़की खायी है
अपनी कुत्तानियत निभाई है
कुत्ते का र्धम है ना दया दिखाना
माँस चाहे किसी का हो,  देखते ही खा जाना
पर मैं दया-र्धम से दूर नही
खाई तो है,  पर मेरा इसमें कोई कसूर नही
मुझे याद है,  जब उस  लड़की  को  कूड़े के ढेर में पाई थी
और कोई नही, उसकी माँ ही उसे फेंकने आई थी
जब मैं उस कन्या के गया पास
उसकी आँखों में देखा भोला विश्वास
जब वो मेरी जीभ देख कर मुस्काई थी
कुत्ता हूँ,  पर उसने मेरे अन्दर इन्सानियत जगाई थी
मैंने सूंघ कर उसके कपड़े,  वो घर खोजा था
जहाँ माँ उसकी थी,  और बापू भी चैन से सोया था
मैंने भू-भू करके उसकी माँ को जगाई
पूछा तू क्यों उस कन्या को फेंक कर आई
चल मेरे साथ,  उसे लेकर आ
भूखी है वो,  उसे अपना दूध पिला
माँ सुनते ही रोने लगी
अपने दुख सुनाने लगी
बोली,  कैसे लाऊँ अपने कलेजे के टुकड़े को
तू सुन,  तुझे बताती हूँ अपने दिल के दुखड़े को
मेरी सासू मारती है तानों की मार
मुझे ही पीटता है,  मेरा भरतार
बोलता है लङ़का पैदा कर हर बार
लङ़की पैदा करने की है सख्त मनाही
कहना है उनका कि कैसे जायेंगी ये सारी ब्याही
वंश की तो तूने काट दी बेल
जा खत्म कर दे इसका खेल
माँ हूँ,  लेकिन थी मेरी लाचारी
इसलिए फेंक आई,  अपनी बिटिया प्यारी
कुत्ते का गला भर गया
लेकिन बयान वो पूरे बोल गया....!
बोला,  मैं फिर उल्टा आ गया
दिमाग पर मेरे धुआं सा छा गया
वो लड़की अपना, अंगूठा चूस रही थी
मुझे देखते ही हंसी,  जैसे मेरी बाट में जग रही थी
कलेजे पर मैंने भी रख लिया था पत्थर
फिर भी काँप रहा था मैं थर-थर
मैं बोला,  अरी बावली, जीकर क्या करेगी
यहाँ दूध नही,  हर जगह तेरे लिए जहर है,  पीकर क्या करेगी
हम कुत्तों को तो,  करते हो बदनाम
परन्तु हमसे भी घिनौने,  करते हो काम
जिन्दी लड़की को पेट में मरवाते हो
और खुद को इंसान कहलवाते हो
मेरे मन में,  डर कर गयी उसकी मुस्कान
लेकिन मैंने इतना तो लिया था जान
जो समाज इससे नफरत करता है
कन्या हत्या जैसा घिनौना अपराध करता है
वहां से तो इसका जाना अच्छा है
इसका तो मर जाना अच्छा है
तुम लटकाओ मुझे फांसी,  चाहे मारो जूत्ते
लेकिन खोज के लाओ,  पहले वो इन्सानी कुत्ते।
लेकिन खोज के लाओ, पहले वो इन्सानी कुत्ते।।


जय सिंह 

तुम्हे पाने की जिद

तुम्हे पाने की जिद
तुम्हे पाने की दिल में, जिद जो उठी नही होती
मेरी दुनिया इस तरह हरगीज लुटी नही होती
भीगी-भीगी आंखे है, सुबह से शाम तक दिलबर
तेरी चाहत जो न होती, ये बारिश नही होती
तेरी यादें  हर पल मुझे बेचैन करती है
मै पागल कैसे होता, अगर साजिश नही होती
हर पल अंधेरे से, यूं  दिलों के है भरे कमरे
दिल के दर पे कोर्इ डोर बंधी नही होती
'जय' तेरी चाहत कैद है, दिन-रात उसकी सांसो मेें
ये दिल यूं पत्थर न होता, जो उनसे रंजिश नही होती।

आपका - जय सिंह 

मुझे देख कर


मुझे देख कर अब तूमको, मुस्कुराना नहीं पड़ेगा,
अपना प्यार मुझ पे, अब जताना नहीं पड़ेगा।
दूर चला जाऊँगा मै, सारे रिश्ते तोड़ के,
लाख जतन तुम करती रहना, टुटे गाँठों को जोड़ के।
अब ना नजर आऊँगा मै, इन आँखों के पोर से।
मुझसे अब तूमको, नजरे चुराना नहीं पड़ेगा,
मुझे देख कर अब तूमको, मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।
सो जाऊँगा कभी मै मौत की गहरी नींद में,
रुह बना मै रोज मिलूँगा, तूमसे सपनों के हिलोड़ में।
लाख जतन तुम करती रहना, अपने हाथ पाँव जोड़ के,
कभी भी लौट के ना आऊँगा मै, इन आँखों को खोल के।
लोरी गा के रात में, मुझे सुलाना नहीं पड़ेगा,
अब तूमको मुझे जगाना नहीं पड़ेगा।
मुझे देख कर अब तूमको, मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।
जब कभी याद आऊँगा मै, बदली बन कर फलक पड़ छा जाऊँगा मै।
यादों का सरताज बना मै, अपना वो गीत फिर गुनगुनाऊँगा,
फिर से अब यूँ ही तूमको, मेरा वो गीत गुनगुनाना पड़ेगा।
वीणा के हर तार पे पाँव रख कर,
फिर से अब तूमको, मेरे लिए आना नहीं पड़ेगा।
मुझे देख कर अब तूमको,  मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।
बादल बन के नभ में मै, बारिश के साथ धरा पर बरसता रहूँगा,
टीप टीप बूँदों सा बना मै, नदियों सा सागर को तरसता रहूँगा।
लाख जतन तुम करती रहना, बूँद बूँद को जोड़ के,
बूँद बूँद से सागर बना मै, अब तो सूख ना पाऊँगा।
मेरे भीगे तन को अब तूमको, सूखाना नहीं पड़ेगा।
मुझे देख कर अब तूमको, मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।
नये फूल सा हर मौसम में मै, खिलता और मुरझाता रहूँगा,
तेरे प्यार में गीतकार बना मै, रोज नये गीत बनाता रहूँगा।
लाख जतन तुम करती रहना, बाग के फूल को तोड़ के,
अब ना गाऊँगा मै, इन होंठों के शोर से।
मेरे जुदाई पे अब तूमको, आँसू बहाना नहीं पड़ेगा।
मुझे देख कर अब तूमको, मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।
इंद्रधनुष के सात रंगों में मै, रंगीला हो जाऊँगा,
रग रग में अब रंग रंग से, रंगोली बन जाऊँगा।
लाख जतन तुम करती रहना, मेरे रग से रंग निचोड़ के,
नहीं मिल पाऊँगा मै, रंगों के झनझोर से।
मेरे तन पे अब तूमको, रंग लगाना नहीं पड़ेगा।
मुझे देख कर अब तूमको, मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।
नये देश और नये वेश में, परदेशी हो जाऊँगा,
आज यहाँ कल जाने कहाँ, अपना डेरा बसाऊँगा।
लाख जतन तुम करती रहना, तिनकों से घर जोड़ के,
अब ना रह पाऊँगा मै, अपनी दुनिया छोड़ के।
मेरे साथ अब तूमको, घर बसाना नहीं पड़ेगा।
मुझे देख कर अब तूमको, मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।
आँखों का आँसू बन के मै, तेरी आँखों में ठहर जाऊँगा,
नेत्र जलद में नीर बना मै, रोज गोते लगाऊँगा।
लाख जतन तुम करती रहना, रो रो के शाम तक भोर से,
आँखों से बह पाऊँगा न मै, उस सुरीली दुनिया को छोड़ के।
मेरे लिए अब तूमको, आँसू बहाना नहीं पड़ेगा।
मुझे देख कर अब तूमको, मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।
रात में मद्धम प्रकाश बना मै, तेरे काले बालों में समा जाऊँगा,
निशा काल में चाँद बना मै, रोज तेरे छत पे आऊँगा।
लाख जतन तुम करती रहना, लौट आऊँ मै इस घनघोर से,
तारों को छोड़ आ पाऊँगा न मै, उस जादुई नगरी को छोड़ के।
मेरे लिए अब तूमको, सपने संजोना नहीं पड़ेगा।
मुझे देख कर अब तूमको, मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।
दुनिया में प्यार का दूत बना मै, हर पल प्यार लुटाऊँगा,
दुष्ट तन में प्यारा सा दिल मै, प्यार का पाठ पढ़ाऊँगा।
लाख जतन तुम करती रहना, कि मै गुजरुँगा तेरी ओर से,
तेरी ओर अपना रुख मोड़ पाऊँगा न मै, टुटे हुए हर बंधन को जोड़ के।
ऐसा नाम कर जाऊँगा मै, सबके दिलों में नजर आऊँगा मै।
मुझे देख कर अब तूमको, नजरे चुराना नहीं पड़ेगा,
मेरे लिए अब तूमको, कही सर झुकाना नहीं पड़ेगा।
मुझे देख कर अब तूमको, मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।

आपका – जय सिंह