मंगलवार, 22 जुलाई 2014

तेरी जाति क्या है रे ?

बच्चे होते है कोरे कागज की तरह
मन होता है कोमल और सच्चा
तभी तो सब कहते है की ये है बच्चा
उनको नहीं होती है जीवन की कोई परवाह
न वर्तमान का भय  न भविष्य की चिंता
उनको नहीं पता होता है क्या है हालत क्या है व्यवस्था
बातों में बहलना बच्चों का स्वभाव होता है
मौन का सन्नाटा उनके लिए अभिशाप होता  है
प्रकृति की गोद में उद्धम किए बिना उन्हें रहा नही जाता
सारी प्रकृति उन्हें माँ की तरह लगती है
उन दिनों मास्टर जी
बच्चे, बुड्ढे , औरत, युवक, के स्वभाव को समझता था
पर आज ऐसा सर्वनाश हुआ की कुछ नहीं जानते
और बच्चो के सामाजिक भावना को है ललकारते
अधिकांश बाते न ही जानते है और न ही जानने की चेष्टा करते है
बच्चे के मन को बहलाने की आशय से
यूँ ही पूछ लिया  "तेरी जाति क्या है रे "?
सवाल सुनते है बच्चे का शरीर में कपकपी सी हो गई
बच्चा कुछ बताना चाहता था
पर उसकी हिम्मत ने जबाब दे दिया
और कुछ बताने से पहले है उसकी शाहस को हमेशा के लिए मार दिया |

..........................जय सिंह 

शुक्रवार, 9 मई 2014

माँ....

             माँ....


माँ.... तेरी गोद
मुझे मेरे अनमोल होने का एहसास कराती है |
माँ.... तेरी हिम्मत
मुझे संसार जितने का विश्वास दिलाती है |
माँ.... तेरी सीख
मुझे आदमी से इन्सान बनाती है |
माँ.... तेरी डॉट
मुझे रोज़ नई राह दिखाती है |
माँ.... तेरी सूरत
मुझे मेरी पहचान बताती है |
माँ.... तेरी पूजा                  
मेरी हर पाप मिटाती है |
माँ.... तेरी लोरी
अब भी मीठी नींद सुलाती है |
माँ.... तेरी एक मुस्कान
रोज़ सारी  थकान मिटाती है |
माँ.... तेरी याद
हर पल मुझे बेचैन कर जाती है |
माँ.... ये तेरी प्यारी तस्वीर
मेरे अकेलेपन को दूर भगाती है ||
माँ.... ओ मेरी माँ..... |

आपका ---- जय सिंह