मंगलवार, 25 जून 2013

प्रकृति का कहर

प्रकृति नही मनुष्य कर रहा है मनमानी

समाचार चैनल का सवाददाता
जोर जोर से चिल्ला रहा है
मां गंगा को विध्वंसिनी और सुरसा बता रहा है
प्रकृति कर रही है अपनी मनमानी
गांव, शहर और सड़क तक भर आया है पानी
नदियों को सीमित करने वाले तटबंध टूट रहे है
और पानी को देखकर प्रशासन के पसीने छूट रहे है
पानी की मार से जनता का जीवन दुश्वार हो रहा है
गंगा-यमुना का पानी आपे से बाहर हो रहा है
बैराजों के दरवाजे चरमरा रहे हैं
और टिहरी जैसे बांध भी
पानी को राकने में खुद को असमर्थ पा रहे है
किसी ने कहा- पानी क्या है साहब
तबाही है तबाही
प्रकृति को सुनार्इ नही देती मासूमों की दुहार्इ
नदियों के इस बर्ताव से मानवता घायल हो जाती है
सच कहें, बरसात के मौसम में नदियां पागल हो जाती है
ऐसा सुनकर मां गंगा मुस्कुरार्इ
और बयान देने जनता की अदालत में चली आर्इ
जब कठघरे में आकर गंगा ने अपनी जुबान खोली
तो वो करूणपूर्ण आक्रोश में कुछ यूं बोली-
मुझे भी तो अपनी जमीन छिनने का डर सालता है
और मनुष्य,
 मनुष्य को तो मेरी निर्मल धारा में
केवल कूड़ा करकट डालता है
धार्मिक आस्थाओं का कचरा मुझे झेलना पड़ता है
जिन्दा से लेकर मुर्दों तक का अवशेष अपने भीतर ठेलना पड़ता है
अरे, जब मनुष्य मेंरे अमृत सेजल में पालीथीन बहाता है
जब मरे हुए पशुओं की सडांध से मेरा जीना मुशिकल हो जाता है
जब मेरी धारा में आकर मिलता है शहरी नालों का बदबूदार पानी
तब किसी को दिखार्इ नही देती मनुष्य की मनमानी 
ये जो मेरे भीतर का जल है इसकी प्रकृति अविरल है
किसी भी तरह की रूकावट मुझसे सहन नहीं होती है
फिर भी तुम्हारे अत्याचार का भार धाराएं अपने उपर ढोती हैं
तुम निरंतर डाले जा रहे हो मुझमें औधोगिक विकास का कबाड़
ऐसे ही थोडे़ आ जाती है बाढ़
मानव की मनमानी जब अपनी हदें लांघ देती है
तो प्रकृति भी अपनी सीमाओं को खूंटी पर टांग देती है
नदियों का पानी जीवनदायी है
इसी पानी ने युगों-युगों से 
खेतों को सींच कर मानव की भूख मिटार्इ है।
और मानव, मानव स्वभाव से ही आततायी है।
इसने निरंतर प्रकृति की शोषण किया
और अपने ओछे स्वार्थों का पोषण किया
नदियों की धारा को बांधता गया
मीलों फैले मेरे पाट को कंक्रीट के दम पर काटता गया
सच तो ये है कि मनुष्य निरंतर नदियों की ओर बढ़ता आया है
नदियों की धारा को संकुचित कर इसने शहर बसाया है
ध्यान से देखें तो आप समझ पाएंगे कि 
नदी शहर में घुसी है या शहर नी में घुस आया है
जिसे बाढ़ का नाम देकर मनुष्य हैरान-परेशान है
ये तो दरअसल गंगा का नेचुरल सफार्इ अभियान है
नदियों का नेचुरल सफार्इ अभियान है

                                        --------- जय सिंह



साभार- दैनिक भास्कर 21 जून 2013 को प्रकाशित