माँ के आंसू बाप की पीड़ा,
भैया जी का उतरा मुख
एक अकेली लड़की रामा, उसके इतने सारे दुःख
घर से बाहर जब भी निकले,
ब्यंग बाण के चुभते तीर
सिटी मारे कोई रांझा, बढ़कर कहता आ जा हीर
सोने जैसी भरी जवानी,
आओ भोगे तन का सुख
एक अकेली लड़की रामा , उसके इतने सारे दुःख
रिश्तेदार बने जो अपने
क्या उनका कर ले विश्वास
कहाँ बैठ कब बाजी खेले , कब ले फेटे मिल कर तास
औरों की छोड़ो कब अपना
खुद ही हो ले खून बिमुख
एक अकेली लड़की रामा , उसके इतने सारे दुःख
है अभाव की बेटी कैसे
पीले होंगे उसके हाथ
लाज बचे कैसे पगड़ी की , किस दर रगड़े बापू माथ
शोषण के कोल्हू में सारी
देह गयी है जैसे चुक
एक अकेली लड़की रामा , उसके इतने सारे दुःख
------जय सिंह