सोमवार, 22 अगस्त 2016

क्या मेरी तकदीर लिखेगा।

   

गूँगा, बहरा, अन्धा, अदृश्य
   क्या मेरी तकदीर लिखेगा।
मै ही उसको न मानू तो
  फिर मुझको क्यो तंग करेगा।

सुनते है शैतान लगा है
   लेकिन है लोकल बस्ती का।
अमेरिका जापान से आकर
   भूत किसी को क्यों नही लगा है।

हिन्दु का मुस्लिम को लगता
  मुस्लिम का हिन्दु को लगता।
इसमे भी लगता है लफड़ा
  जैसे हो आपस का झगड़ा।

ईसाइयों का नही सुना है
   जैन धर्म का नही लगा है।
बौद्ध धर्म मे नही मान्यता
   देवी देवता दूर भगा है।

पुनर्जन्म का जिक्र नही है
  भूतो को भी फिक्र नही है।
बौद्धो से आकर टकराये
      बौद्धो के घर भी तो जाये।

एक अरब आबादी देश की
जिसमे तेतीस करोड देवता है।
खेत जोतने कोई न जावे
  बैठे-बैठे इन्हे खिलाये।

कैसे मिटे गरीबी देश की
  एक तिहाई देवता खा जाये।
मन्दिर का निर्माण कराये
  मस्जिद का निर्माण कराये।

भूत बिचारे बेघर कैसे
  बीडी पीकर खुश हो जाते।
अन्डा नीबू नही चढाते
     देवता इनको मार लगाते।

पिछडों या शुद्रो मे आते
       इसलिये नही पूजे जाते।
बकरा, मुर्गा, देवता खाते
      लगता ये सवर्णो मे आते।

देव स्थल पर चढ नही सकते
      ये भी जाती धर्म मानते।
कुछ देवता शाकाहारी है
    लगता कुछ मासाहारी है।

पैदल लगता कोई न चलता
      सबकी अलग सवारी है।
दुर्गा माता शॆर पर चढती
       लक्ष्मी उल्लू से भारी है।

सरस्वती माता कमल विराजी
गणेश ने चूहे की जान निकाली है।
घोडे पर सैयद चढ. बैठे
शंकर की   बैल सवारी है।

कहाँ कहाँ से पैदा हो गये
भैया ये प्रश्न से भारी है।
नाभि, भुज, मुख से पैदा
   तडपी  कोख.  बेचारी है।  
  

.........जय सिंह
वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक 

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016

आरक्षण पर हाए तौबा करने वालों पर ..................


आरक्षण पर हाए तौबा
करने वालों पर थू है।
भेदभाव का दंभ सदा ही
भरने वालों पर थू है।।

पांच हजार सालों तक पशु 
से बदतर जीवन जीया
झूठन खाई उतरन पहनी
जाने कैसे जख्मों को सीया
समानता.बन्धुता आने से
डरने वालों पर थू है।।

रोज नया शिगूफा छोड़
अपनी सियासत चमकाते है
साम्प्रदायिकता में डूब के
ये घातक राग ही गाते हैं
बाबा साहब का दिया खा के
हराम करने वालों पर थू है।।

पूना पैक्ट अन्यायी समझौता
गांधी हमको लूट गया
मूलनिवासी हम भारत के
हमारा हक पीछे छूट गया
जुल्मी को ही लानत नहीं
जरने वालों पर थू है।।

आरक्षित सीटों से जीत
विधायक सांसद बन जाते हैं
आरक्षण विरोधी आचरण से
अपने आकाओं को भाते हैं
बाबा साहब की नेक कमाई
चरने वालों पर थू है।।

सिल्ला भारत का संपन्न वर्ग
गरीबों को है कोस रहा
गरीब सोया चिरनिद्रा में
जाने कब से बेहोंश रहा
बहुजन समाज की एकता
हरने वालों पर थू है।।

आरक्षण पर हाए तौबा
करने वालों पर थू है।
भेदभाव का दंभ सदा ही
भरने वालों पर थू है।।

जय सिंह 
वरिष्ठ  पत्रकार,कवि एवं  लेखक 

मरूस्थल से भी जल निकलेगा

कोशिश कर, हल निकलेगा।
आज नही तो, कल निकलेगा।
अर्जुन के तीर सा सध,
मरूस्थल से भी जल निकलेगा।।
मेहनत कर, पौधो को पानी दे
बंजर जमीन से भी फल निकलेगा।
ताकत जुटा, हिम्मत को आग दे
फौलाद का भी बल निकलेगा।
जिन्दा रख, दिल में उम्मीदों को
गरल के समन्दर से भी गंगाजल निकलेगा।
कोशिशें जारी रख कुछ कर गुजरने की
जो है आज थमा थमा सा जो, 
चल ओ भी हल  निकलेगा।।
 *****जय सिंह *****

दूर खड़े क्या सोच रहे हो




उठो संगठित होकर के सब
अपनी इज्जत अपनी अस्मत
अपनी लाज बचाओ  रे
दूर खड़े क्या सोच रहे  हो
सड़कों  पर आ जाओ  रे 
आग लगी है कहीं अभी दूर तो
घर तक भी आ सकती है 
आज बिरादर झुलस रहा है 
कल तुमको झुलसा सकती है
उठो संगठित होकर के सब
भड़़की आग बुझाओ  रे
दूूर खड़े क्या सोच रहे हो
सड़को  पर आ जाओ   रे
कुत्ते बिल्ली समझ के हमको 
आतातायी  मार  रहे है 
कायर बन कर छुुपे घरों में
हम बैठे फुफकार  रहे है 
दलने पिसने सेे अच्छा  है
मिट्टी में  मिल जाओ  रेे
दूूर खड़े क्या सोच रहेे हो
सड़को पर आ जाओ   रे
  
रोक नही सकती है 
हम पर होते अत्याचारो को
वोट के  बल पर धूल चटा दो
इन जालिम सरकारों  को
न्याय मिलेेगा तब ही जब 
अपनी  सरकार बनाओ रे
दूर खडे क्या सोच रहे  हो
सड़कों पर आ जाओ  रेे
रोक सको तो बढ़ कर रोको
खून  के जिम्मेदारों  को
रोको,रोको दलित वर्ग पर 
बढ़ते  अत़्याचारो  को 
उठोे संगठित आँधी बनकर
अम्बर तक छा जाओ रेे
दूर खड़े क्या ताक रहे हो
सड़कों  पर आ जाओ रे

 ***** जय सिंह*****

क्रांति का पैगाम था, रोहित वेमुला नाम था

वो मर्द था
वो मर्द था वो मर्द था
वो मर्द था वो मर्द था।
सीने में जिसके दर्द था।।
वो टकराया सरकारों से
मनुवादी वाचाल गद्दारों से
दंश मनुवाद का बेदर्द था।
वो मर्द था वो मर्द था।।
झुकना उसने सीखा नहीं
रुकना उसने सीखा नहीं
सच पर चढ़ गया गर्द था।
वो मर्द था वो मर्द था।।
धारा के विरुध लड़ता रहाए
वैरी के सीने पे चढ़ता रहाए
वंचितों का वो हमदर्द था।
वो मर्द थाए वो मर्द था।।
रोहित वेमुला नाम था
वो क्रांति का पैगाम था
आखिर टूट गया जर्द था।
वो मर्द था वो मर्द था।।
सिल्ला रोए जार- जार
तूं याद आए बार-बार
निभा गया वो फर्ज था।
वो मर्द था  वो मर्द था।।
***** जय  सिंह*****

तुम तो पापी पाकिस्तान से ताल ठोकने वाले थे

पठानकोट एयरबेस पर हुए आतंकी हमले पर कड़ा कदम उठाने की सत्ताधीशों से अपील करती नई कविता
युद्ध  टले उस दुश्मन को फुसलाना बहुत जरुरी था
ये माना लाहौर तुम्हारा जाना बहुत जरुरी था
विपक्षियों के आगे होती नाकामी से बचना था
युद्ध थोपने वाली घातक बदनामी से बचना था । 
अटल सरीखा तुमने भी भरकस प्रयास कर डाला जी
लेकिन नहीं सुलझ पायेगा ये मकड़ी का जाला जी
बगुले वेद मंत्र पढ़ करके  हंस नही हो सकते हैं
घास चबाकर के सियार गौ वंश नही हो सकते हैं । 
गधे कभी योगासन करके अश्व नही हो पाएंगे
कौए हरगिज़ नही कोकिला स्वर में गीत सुनाएंगे
 बुद्ध और अम्बेडकर  के भारत का फिर से सम्मान हुआ
छुरा पीठ पर फिर से खाया, घायल 'कोट -पठान' हुआ
कायरता का तेल चढ़ा है,  लाचारी की बाती पर
दुश्मन नंगा नाच करे है, भारत माँ की छाती पर
दिल्ली वाले इन हमलों पर दो आंसू रो देते हैं
कुत्ते पांच मारने में, हम सात शेर खो देते हैं
सत्ता में आने से पहले, जान झोंकने वाले थे
तुम तो पापी पाकिस्तान  से ताल ठोकने वाले थे
सत्ता मिलते ही लेकिन ये अब कैसी लाचारी है
माना तुम पर बहुत बड़ी भारत की ज़िम्मेदारी है
उठो बढ़ो आगे, भारत की माटी का उपकार कहे
हर हमले में मरने वाले सैनिक का परिवार कहे
अल्टीमेटम आज थमा दो, आतंकी सरदारों को
भारत फिर से नही सहेगा, भाड़े के हत्यारों को
बाज अगर जल्दी ना आये,  तुम अपनी करतूतों से
ये इस्लामाबाद पिटेगा, हिंदुस्तानी जूतों से
एटम बम दो चार बनाकर कब तक यूँ धमकायेगा
अगर पहल हमने कर दी, तू जड़ से ही मिट जाएगा
छप्पन इंची सीने को अब थोडा और बढ़ाओ जी
सेनाओं को खुली छूट देकर उस पार चढ़ाओ जी
वर्ना तुम भी नामर्दी के रोगों से घिर जाओगे
कुर्सी से गिरने से पहले नज़रों से गिर जाओगे।।।।।
      
@ जय सिंह

बुधवार, 12 अगस्त 2015

शादी के बाद दुर्गति



शादी के बाद दुर्गति तो
लड़की की होती है लेकिन
घड़ियाली आंसू  
बहाता लड़का है !
आज़ादी छिनी
लड़की की 
लेकिन
ग़ुलामी का ढिंढोरा
पीटता लड़का है !

असली समझौता तो
लड़की करती है
लेकिन खुद को क़ैदी
समझता लड़का है !

लड़की का घर छूटा
माँ - बाप, भाई-बहन 
सहेलियां छूटीं !

उसकी आज़ादी छिनी
घूमने की, पहनने की,
नौकरी करने की,
हँसने-बोलने  की,
कहीं आने-जाने  की !

उसे ग़ुलामी मिली
खाना बनाने की
सास-ससुर की  सेवा की,
डांट-फटकार सहने की
कभी-कभी पिटने की भी
घर भर के कपड़े धुलने की !

और लड़के को �

उसको तो घर बैठे
एक नौकरानी मिली
साथ में दहेज़ भी
वंश बढ़ाने वाली मशीन 
और रोबोट की तरह
 बिना तर्क किये
हर सही-ग़लत हुकुम की
तामील करने वाली
एक निजी संपत्ति भी !

शादी के बाद लड़की की
तुलना में लड़कों को
न के बराबर कमप्रमाइज़
करना पड़ता है
लेकिन दुनिया भर में
ढिंढोरा लड़के ही
पीटते हैं !

इसलिए
शादी के बाद
अपनी आज़ादी छिनने
का रोना रोने वाले !
सारा दोष
वाइफ़ पे थोपने वाले
संस्कारी मर्दो !

एक बार
दूसरे तरह से भी
सोच कर देखो !

फ़र्ज़ करो कि
शादी के बाद तुम्हें
अपना घर
माँ-बाप, भाई-बहन 
गाँव और मित्र सब छोड़ना पड़े
जींस, टी-शर्ट की जगह
साड़ी पहननी पड़े
घर में बंद रहना पड़े
खाना बनाना पड़े
बर्तन-कपड़े धुलने पड़ें
डांट-फटकार सहना पड़े
कहीं आने -जाने पे
पाबंदी लग जाए तो
क्या हाल होगा तुम्हारा?

इसलिए आगे से
दोषारोपण करने से पहले
और
घड़ियाली आंसू
बहाने से पहले
सौ बार सोचना !

अपने पार्टनर को
इंसान समझिये
मशीन नहीं !
साथी समझिये
नौकरानी नहीं !
उसका हाथ बंटाइए
फ़रमान मत सुनाइए !

उसकी आज़ादी
उसे दीजियेए क़ैद नहीं !
प्यार करिए
दया मत दिखाइए !
अपना सब कुछ
छोड़ के आई है
इसलिए !

तुमसे अधिक आज़ादी
हक़- बराबरी और सम्मान
डिज़र्व करती है लड़की
ये बात जिस दिन आपके
भेजे में घुस गयी 
ज़िन्दगी बहुत
ख़ूबसूरत दिखने लगेगी!

बुधवार, 29 अप्रैल 2015

रेलगाड़ी की जनरल बोगी ........


 भारतीय रेल की जनरल बोगी
पता नहीं आपने भोगी कि नहीं भोगी
एक बार हम भी गलती से कर रहे थे यात्रा
प्लेटर्फाम पर देखकर सवारियों की मात्रा
हमारे पसीने छूटने लगे
हम सामान उठाकर घर की ओर फूटने लगे
तभी एक कुली आया
मुस्कुरा कर बोला - सर अन्दर जाओगे क्या  ?
हमने कहा - तुम पहुँचाओगे क्या !
वो बोला - बड़े-बड़े र्पासल पहुँचाए हैं आपको भी पहुँचा दूंगा
मगर रुपये पूरे पचास लूँगा.
हमने कहा - पचास रुपैया ?
वो बोला - हाँ भैया
और दो रुपये आपके बाकी सामान के
हमने कहा - सामान नहीं है, अकेले हम हैं
वो बोला - बाबूजी, आप किस सामान से कम हैं !
भीड़ देख रहे हैं, कंधे पर उठाना पड़ेगा,
धक्का देकर अन्दर पहुँचाना पड़ेगा
वैसे तो हमारे लिए बाएँ हाथ का खेल है
मगर आपके लिए दाँया हाथ भी लगाना पड़ेगा
मंजूर हो तो बताओ
हमने कहा - देखा जायेगा, तुम उठाओ
कुली ने जय बजरंगबली का नारा लगाया
और पूरी ताकत लगाकर हमें जैसे ही उठाया
कि खुद ही जमीं पर  बैठ गया
दूसरी बार कोशिश की तो लेट गया
बोला - बाबूजी पचास रुपये तो कम हैं
हमें क्या मालूम था कि आप आदमी नहीं, बम हैं
भगवान ही आपको उठा सकता है
हम क्या खाकर उठाएंगे
आपको उठाते-उठाते खुद दुनिया से उठ जायेंगे !
तभी गाड़ी ने सीटी दे दी
हम सामान उठाकर भागे 
बड़ी मुश्किल से डिब्बे के अन्दर घुस पाए
डिब्बे के अन्दर का दृश्य घमासान था
पूरा डिब्बा अपने आप में हल्दी घाटी का मैदान था
लोग लेटे थे, बैठे थे, झुके थे, खड़े थे
जिनको कहीं जगह नहीं मिली, वो बर्थ के नीचे पड़े थे
हमने एक गंजे यात्री से कहा - भाई साहब
थोडी सी जगह हमारे लिए भी बनाइये
वो सिर झुका के बोला - आइये हमारी खोपड़ी पे बैठ जाइये
आप ही के लिए साफ़ की है
केवल दो रूपए देना, लेकिन फिसल जाओ तो हमसे मत कहना
तभी एक भरा हुआ बोरा खिड़की के रास्ते चढ़ा 
आगे बढा और गंजे के सिर पर गिर पड़ा
गंजा चिल्लाया - किसका बोरा है ?
बोरा फौरन खडा हो गया
और उसमें से एक लड़का निकल कर बोला
बोरा नहीं है बोरे के भीतर बारह साल का छोरा है
अन्दर आने का यही एक तरीका है
हमने आपने माँ-बाप और पड़ोसी से सीखा है
आप तो एक बोरे में ही घबरा रहे हैं
जरा ठहर तो जाओ अभी गददे में लिपट कर
हमारे बाप जी अन्दर आ रहे हैं
उनको आप कैसे समझायेंगे
हम तो खड़े भी हैं 
वो तो आपकी गोद में ही लेट जाएँगे
 एक अखंड सोऊ, चादर ओढ़ कर सो रहा था 
एकदम कुम्भकरण का बाप हो रहा था 
हमने जैसे ही उसे हिलाया 
उसकी बगल वाला चिल्लाया - 
ख़बरदार हाथ मत लगाना वरना पछताओगे 
हत्या के जुर्म में अन्दर हो जाओगे 
हमने पुछा- भाई साहब क्या लफड़ा है ? 
वो बोला - बेचारा आठ घंटे से एक टाँग पर खड़ा है 
और खड़े-खड़े इस हालत मैं पहुँच गया कि, अब पड़ा है 
आपके हाथ लगते ही ऊपर पहुँच जायेगा 
इस भीड़ में ज़मानत करने क्या तुम्हारा बाप आयेगा ?
एक नौजवान खिड़की से अन्दर आने लगा
तो पूरे डिब्बा मिल कर उसे बाहर धकियाने लगा
नौजवान बोला - भाइयों, भाइयों
र्सिफ खड़े रहने की जगह चाहिए
एक अन्दर वाला बोला - क्या ?
खड़े रहने की जगह चाहिए तो प्लेटर्फोम पर खड़े हो जाइये
जिंदगी भर खड़े रहिये कोई हटाये तो कहिये
जिसे देखो घुसा चला आ रहा है
रेल का डिब्बा सेन्ट्रल जेल हुआ जा रहा है !
इतना सुनते ही एक अपराधी चिल्लाया -
रेल को जेल मत कहो मेरी आत्मा रोती है
यार जेल के अन्दर कम से कम
चलने-फिरने की जगह तो होती है !
एक सज्जन फ़र्श पर बैठे हुए थे आँखें मूँदे 
उनके सर पर अचानक गिरीं पानी की गरम-गरम बूँदें 
तो वे सर उठा कर चिल्लाये - कौन है, कौन है 
साला पानी गिरा कर मौन है 
दिखता नहीं नीचे तुम्हारा बाप बैठा है ! 
क्षमा करना बड़े भाई पानी नहीं है 
हमारा छः महीने का बच्चा लेटा है कृपया माफ़ कर दीजिये 
और अपना मुँह भी नीचे कर लीजिये 
वरना बच्चे का क्या भरोसा ! 
क्या मालूम अगली बार उसने आपको क्या परोसा !!
अचानक डिब्बे में बड़ी जोर का हल्ला हुआ 
एक सज्जन दहाड़ मार कर चिल्लाये - 
पकड़ो-पकड़ो जाने न पाए 
हमने पुछा क्या हुआ, क्या हुआ ? 
वे बोले - हाय-हाय, मेरा बटुआ किसी ने भीड़ में मार दिया 
पूरे तीन सौ रुपये से उतार दिया टिकट भी उसी में था ! 
कोई बोला - रहने दो यार भूमिका मत बनाओ 
टिकट न लिया हो तो हाथ मिलाओ 
हमने भी नहीं लिया है 
गर आप इस तरह चिल्लायेंगे 
तो आपके साथ क्या हम नहीं पकड़ लिए जायेंगे?
वे सज्जन रोकर बोले - नहीं भाई साहब 
मैं झूठ नहीं बोलता मैं एक टीचर हूँ
कोई बोला - तभी तो झूठ है टीचर के पास और बटुआ ? 
इससे अच्छा मजाक इतिहास मैं आज तक नहीं हुआ !
टीचर बोला - कैसा इतिहास मेरा विषय तो भूगोल है 
तभी एक विद्र्याथी चिल्लाया - बेटा इसलिए तुम्हारा बटुआ गोल है !
बाहर से आवाज आई - गरम समोसे वाला
अन्दर से फ़ौरन बोले एक लाला 
 दो हमको भी देना भाई 
सुनते ही ललाइन ने डाँट लगायी - बड़े चटोरे हो ! 
क्या पाँच साल के छोरे हो ? 
इतनी गर्मी  में खाओगे ? 
फिर पानी को तो नहीं चिल्लाओगे ? 
अभी मुँह में आ रहा है समोसे खाते ही आँखों में आ जायेगा 
इस भीड़ में पानी क्या रेल मंत्री दे जायेगा ?
तभी डिब्बे में हुआ हल्का उजाला 
किसी ने जुमला उछाला ये किसने बीड़ी जलाई है ? 
कोई बोला - बीड़ी नहीं है स्वागत करो 
डिब्बे में पहली बार बिजली आई है 
दूसरा बोला - पंखे कहाँ हैं ? 
उत्तर मिला - जहाँ नहीं होने चाहिए वहाँ हैं 
पंखों पर आपको क्या आपत्ति है ? 
जानते नहीं रेल हमारी राष्ट्रीय संपत्ति है 
कोई राष्ट्रीय चोर हमें गच्चा दे गया है 
संपत्ति में से अपना हिस्सा ले गया है 
आपको लेना हो आप भी ले जाओ 
मगर जेब में जो बल्ब रख लिए हैं 
उनमें से एकाध तो हमको दे जाओ !
अचानक डिब्बे में एक विस्फोट हुआ 
हलाकि यह बम नहीं था 
मगर किसी बम से कम भी नहीं था 
यह हमारा पेट था उसका हमारे लिए संकेत था 
कि जाओ बहुत भारी हो रहे हो हलके हो जाओ 
हमने सोचा डिब्बे की भीड़ को देखते हुए 
बाथरूम कम से कम दो किलोमीटर दूर है 
ऐसे में कुछ हो जाये तो किसी का क्या कसूर है 
इसीलिए  रिस्क नहीं लेना चाहिए 
अपना पडोसी उठे उससे पहले अपने को चल देना चाहिए 
सो हमने भीड़ में रेंगना शुरू किया 
पूरे दो घंटे में पहुँच पाए 
बाथरूम का दरवाजा खटखटाया तो भीतर से एक सिर बाहर आया 
बोला - क्या चाहिए ? 
हमने कहा - बाहर तो आजा भैये हमें जाना है 
वो बोला - किस किस को निकालोगे ? अन्दर बारह लोग खड़े हैं 
हमने कहा - भाई साहब हम बहुत मुश्किल में पड़े हैं 
मामला बिगड़ गया तो बंदा कहाँ जायेगा ? 
वो बला - क्यूँ आपके कंधे पे जो झोला टँगा है
 वो किस दिन काम में आयेगा ... 
इतने में लाइट चली गयी 
बाथरूम वाला वापस अन्दर जा चुका था 
हमारा झोला कंधे से गायब हो चुका था 
कोई अँधेरे का लाभ उठाकर अपने काम में ला चुका था 
अचानक गाड़ी बड़ी जोर से हिली 
एक यात्री ख़ुशी के मारे चिल्लाया - अरे चली, चली
कोई बोला - जय बजरंग बली, कोई बोला - या अली 
हमने कहा - काहे के अली और काहे के बली ! 
गाड़ी तो बगल वाली जा रही है 
और तुमको अपनी चलती नजर आ रही है ? 
प्यारे ! सब नज़र का धोखा है 
दरअसल ये रेलगाडी नहीं 
भारत सरकार की रेल है 
हमारी ज़िन्दगी तो बस नेताओ के लिए खेल है .
जय सिंह 

मंगलवार, 17 मार्च 2015

बेटी बचाओ पर जय सिंह की कविता-------

बेटी बचाओ 

कोर्ट  में एक अजीब मुकदमा आया
एक सिपाही एक कुत्ते को बांध कर लाया
सिपाही ने जब कटघरे में आकर कुत्ता खोला
कुत्ता रहा चुपचाप,  मुँह से कुछ ना बोला..!
नुकीले दांतों में कुछ खून सा नज़र आ रहा था
चुपचाप था कुत्ता, किसी से ना नजर मिला रहा था
फिर हुआ खड़ा एक वकील, देने लगा दलील
बोला,  इस जालिम कुत्ते के कर्मो  से यहाँ मची तबाही है
इसके कामों को देख कर इन्सानियत भी घबराई है
ये क्रूर है, र्निदयी है,  इसने समाज में तबाही मचाई है
दो दिन पहले जन्मी एक कन्या को,  अपने दाँतों से खाई है
अब ना देखो किसी की बाट
आदेश करके उतारो इसे मौत के घाट
जज की आँख हो गयी लाल
तूने क्यूँ खाई कन्या, जल्दी बोल डाल
तुझे बोलने का मौका नहीं देना चाहता
लेकिन मजबूरी है, अब तक तो तू फांसी पर लटका पाता
जज साहब,  इसे जिन्दा मत रहने दो
कुत्ते का वकील बोला,  लेकिन इसे भी तो कुछ कहने दो
फिर कुत्ते ने मुंह खोला, और धीरे से बोला
हाँ,  मैंने वो लड़की खायी है
अपनी कुत्तानियत निभाई है
कुत्ते का र्धम है ना दया दिखाना
माँस चाहे किसी का हो,  देखते ही खा जाना
पर मैं दया-र्धम से दूर नही
खाई तो है,  पर मेरा इसमें कोई कसूर नही
मुझे याद है,  जब उस  लड़की  को  कूड़े के ढेर में पाई थी
और कोई नही, उसकी माँ ही उसे फेंकने आई थी
जब मैं उस कन्या के गया पास
उसकी आँखों में देखा भोला विश्वास
जब वो मेरी जीभ देख कर मुस्काई थी
कुत्ता हूँ,  पर उसने मेरे अन्दर इन्सानियत जगाई थी
मैंने सूंघ कर उसके कपड़े,  वो घर खोजा था
जहाँ माँ उसकी थी,  और बापू भी चैन से सोया था
मैंने भू-भू करके उसकी माँ को जगाई
पूछा तू क्यों उस कन्या को फेंक कर आई
चल मेरे साथ,  उसे लेकर आ
भूखी है वो,  उसे अपना दूध पिला
माँ सुनते ही रोने लगी
अपने दुख सुनाने लगी
बोली,  कैसे लाऊँ अपने कलेजे के टुकड़े को
तू सुन,  तुझे बताती हूँ अपने दिल के दुखड़े को
मेरी सासू मारती है तानों की मार
मुझे ही पीटता है,  मेरा भरतार
बोलता है लङ़का पैदा कर हर बार
लङ़की पैदा करने की है सख्त मनाही
कहना है उनका कि कैसे जायेंगी ये सारी ब्याही
वंश की तो तूने काट दी बेल
जा खत्म कर दे इसका खेल
माँ हूँ,  लेकिन थी मेरी लाचारी
इसलिए फेंक आई,  अपनी बिटिया प्यारी
कुत्ते का गला भर गया
लेकिन बयान वो पूरे बोल गया....!
बोला,  मैं फिर उल्टा आ गया
दिमाग पर मेरे धुआं सा छा गया
वो लड़की अपना, अंगूठा चूस रही थी
मुझे देखते ही हंसी,  जैसे मेरी बाट में जग रही थी
कलेजे पर मैंने भी रख लिया था पत्थर
फिर भी काँप रहा था मैं थर-थर
मैं बोला,  अरी बावली, जीकर क्या करेगी
यहाँ दूध नही,  हर जगह तेरे लिए जहर है,  पीकर क्या करेगी
हम कुत्तों को तो,  करते हो बदनाम
परन्तु हमसे भी घिनौने,  करते हो काम
जिन्दी लड़की को पेट में मरवाते हो
और खुद को इंसान कहलवाते हो
मेरे मन में,  डर कर गयी उसकी मुस्कान
लेकिन मैंने इतना तो लिया था जान
जो समाज इससे नफरत करता है
कन्या हत्या जैसा घिनौना अपराध करता है
वहां से तो इसका जाना अच्छा है
इसका तो मर जाना अच्छा है
तुम लटकाओ मुझे फांसी,  चाहे मारो जूत्ते
लेकिन खोज के लाओ,  पहले वो इन्सानी कुत्ते।
लेकिन खोज के लाओ, पहले वो इन्सानी कुत्ते।।


जय सिंह 

तुम्हे पाने की जिद

तुम्हे पाने की जिद
तुम्हे पाने की दिल में, जिद जो उठी नही होती
मेरी दुनिया इस तरह हरगीज लुटी नही होती
भीगी-भीगी आंखे है, सुबह से शाम तक दिलबर
तेरी चाहत जो न होती, ये बारिश नही होती
तेरी यादें  हर पल मुझे बेचैन करती है
मै पागल कैसे होता, अगर साजिश नही होती
हर पल अंधेरे से, यूं  दिलों के है भरे कमरे
दिल के दर पे कोर्इ डोर बंधी नही होती
'जय' तेरी चाहत कैद है, दिन-रात उसकी सांसो मेें
ये दिल यूं पत्थर न होता, जो उनसे रंजिश नही होती।

आपका - जय सिंह